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अयोध्या
तीर्थंकर समवसरण आदि रचना
March 17, 2025
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Rahul
तीर्थंकर समवसरण आदि रचना
१. अनादिनिधन णमोकार महामंत्र
२. णमोकार महामंत्र एवं चत्तारि मंगल पाठ
३. चौबीस तीर्थंकर इस अवसर्पिणी में हुए हैं
४. समवसरण का वर्णन
५. २४ तीर्थंकरों के समवसरण का प्रमाण
६. समवसरण में आठ भूमि और तीन कटनी
७. समवसरण में रचनाएँ (आदिपुराण आदि ग्रंथों से)
८. समवसरण में गंधकुटी का वर्णन
९. ह्रीं बीजाक्षर में चौबीस तीर्थंकर भगवान
१०. सिद्धलोक और सिद्धशिला
११. तीन लोक की रचना
१२. हिमवान आदि पर्वतों के आकार
१३. नंदीश्वरद्वीप में पर्वतों का आकार
१४. अनादि निधन महामंत्र, तीर्थ आदि जो अनादि अनंत हैं
१५. आर्यिका चर्या (आर्यिका की नवधाभक्ति आगमोक्त है)
१६. पं. लालाराम जी के चैत्यभक्ति के विषय में उद्गार
१७. द्वादशांग श्रुतज्ञान लिपिबद्ध नहीं हो सकता
१८. प्रवचन पद्धति
१९. वर्ण व्यवस्था के विषय में सही अर्थ
२०. अर्थ गलत हो जाने से दो मत नहीं होते हैं-देखें प्रमाण सूर्य-चन्द्र के बिम्ब की सही संख्या का स्पष्टीकरण
२१. ज्योतिर्वासी विमानों का स्वरूप एवं प्रमाण-माप
२२. प्रतिष्ठा के विषय में कतिपय विचार बिन्दु
२३. आर्यिकाओं के लिए ग्रंथ लेखन और सिद्धांत ग्रंथादि केअध्ययन के प्रमाण
२४. वर्तमान में दिगम्बर जैन शासन में पंथ परम्परा
२५. तीर्थंकर भगवान जन्म से ही भगवान हैं
२६. जैनं जयतु शासनं के स्थान पर ‘नमोऽस्तु शासन जयवंत हो’ कहाँ तक उचित है एक अनुशीलन
२७. जैन सरस्वती-लक्ष्मी की मूर्तियों की परम्परा
२८. विशेष उद्बोधन-गणिनी ज्ञानमती माताजी
२९. कुलदेवता के सन्दर्भ में
३०. चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली
३१. श्री ऋषभदेव के पुत्र ‘भरत से भारत’
३२. न्यायालयों के निर्णय जैनधर्म बहुत प्राचीन धर्म हैं इसके कुछ प्रमाण
३३. मुम्बई हाईकोर्ट के महत्त्वपूर्ण निर्णय का सार जैन हिन्दू नहीं हैं
३४. पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के दीक्षित जीवनके ७१ चातुर्मास (१९५३ से २०२३ तक)
३५. वंदना, अयोध्या तीर्थवंदना
३६ प्रशस्ति
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