जैनधर्म का सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ ‘‘प्रयाग’’है । यद्यपि जैन तीर्थ के रूप में प्रयाग के प्रति समाज में जागरूकता व्याप्त नहीं थी, लेकिन जब पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा से सन् २००० में भगवान ऋषभदेव का अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महोत्सव मनाया गया तो इस महोत्सव के समापन पर पूज्य माताजी ने समाज को प्रयाग तीर्थ भूमि के प्रति जागरूक करते हुए यह बताया कि, करोड़ों वर्ष पूर्व प्रयाग की इसी धरती पर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण की थी एवं उनको केवलज्ञान की प्राप्ति भी इसी प्रयाग भूमि पर हुई थी अत: इस युग का सर्वप्राचीन जैन तीर्थ प्रयाग ही है । प्रयाग तीर्थभूमि की पौराणिकता के आधार पर सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव ने यहाँ केशलोंच किया, पश्चात् इसी तीर्थभूमि पर वटवृक्ष के नीचे उनकी दीक्षा हुई, पुन: १००० वर्ष की कठोर तपश्चर्या के उपरांत भगवान ऋषभदेव को इसी प्रयाग तीर्थभूमि पर वटवृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई एवं इन्द्रों द्वारा युग के सर्वप्रथम समवसरण की रचना भी इसी तीर्थभूमि पर हुई थी। इसी के साथ प्रयाग की इस महान तीर्थभूमि पर ही ब्राह्मी और सुन्दरी कन्याओं की ‘‘आर्यिका दीक्षा’’ भी सम्पन्न हुई थी। इस प्रकार पूज्य माताजी की प्रेरणा से जन-जन में इस बात का प्रचार-प्रसार हुआ कि जैनधर्म के अनुसार प्रयाग तीर्थ अत्यन्त प्राचीन एवं पवित्र तीर्थ के रूप में पूज्यनीय है । प्रयाग तीर्थ के माहात्म्य को स्थायित्व प्रदान करने हेतु पूज्य माताजी की प्रेरणा से सन् २००१ में इलाहाबाद-बनारस हाइवे पर तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली तीर्थ का भव्य विकासकार्य किया गया एवं तीर्थ पर विशाल कृत्रिम कैलाशपर्वत की रचना करके ४ फरवरी २००१ से ८ फरवरी २००१ तक ‘‘भगवान ऋषभदेव जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं १००८ महावुंâभों से महामस्तकाभिषेक महोत्सव’’ आयोजित किया गया । वर्तमान में प्रतिवर्ष इस तीर्थ पर वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है जिससे जैन समाज के हजारों श्रद्धालुजन इस तीर्थ की यात्रा करने हेतु प्रयाग पधारते हैं एवं भगवान के महामस्तकाभिषेक आदि कार्यक्रम में भाग लेकर पुण्यार्जन करते हैं । इस तीर्थ पर मध्य में विशाल कैलाशपर्वत की प्रतिकृति बनाकर पर्वत की चोटी पर १४ फुट उत्तुंग भगवान ऋषभदेव की विशाल पद्मासन प्रतिमा विराजमान की गई है एवं समूचे पर्वत पर ७२ सुन्दर चैत्यालयों में वर्तमान-भूत एवं भविष्यत्कालीन तीर्थंकर भगवन्तों की प्रतिमाएँ विराजमान की गई हैं । पर्वत के नीचे अत्यन्त आकर्षक गुफा मंदिर भी निर्मित है, जिसमें सवा तीन फुट ऊँची भगवान ऋषभदेव की अष्टधातु वाली पद्मासन प्रतिमा का दर्शन करके भक्तजन विशेष आनंद का अनुभव करते हैं । आजू-बाजू में दाईं तरफ ‘‘भगवान ऋषभदेव दीक्षाकल्याणक तपोवन’’ का निर्माण करके वटवृक्ष के नीचे महामुनि तीर्थंकर ऋषभदेव की सुन्दर प्रतिमा विराजमान की गई है तथा बाईं तरफ ‘‘भगवान ऋषभदेव समवसरण मंदिर’’ का निर्माण करके सुन्दर समवसरण रचना स्थापित की गई है । साथ ही तीर्थ पर ३१ फुट ऊँचा विशाल कीर्तिस्तंभ का निर्माण भी किया गया है । इस प्रकार अनेक रचनाओं से निर्मित इस तीर्थ पर यात्रियों की सुविधा हेतु डीलक्स धर्मशालाएं, भोजनशाला, कैन्टीन आदि सभी व्यवस्थाएँ उपलब्ध हैं तथा सुन्दर बाग-बगीचे से युक्त हरे-भरे लॉन, फौव्वारा आदि इस तीर्थ की रौनक को चौगुना वृद्धिंगत करते हैं । आज ऐसे ‘‘तपस्थली तीर्थ’’ से यह प्रयाग तीर्थ भूमि समूचे विश्व में गौरव को प्राप्त हुई है ।