जम्बूद्वीप के हिमवान आदि छह कुलाचलों के पद्म आदि सरोवरों में रहने वाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी देवियाँ जम्बूद्वीप के भरत-ऐरावत व विदेह क्षेत्रों में होने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा के लिए आती हैं। ऐसे ही पूर्वधातकीखण्ड के सरोवरों की श्री आदि देवियाँ वहाँ के भरत, ऐरावत और विदेह क्षेत्र में होने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा करती हैं। पश्चिमधातकीखण्ड में वहीं के सरोवरों के कमलों में रहने वाली श्री आदि देवियाँ वहीं के भरत-ऐरावत व विदेह क्षेत्रों में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा करने जाती हैं। इसी प्रकार पूर्वपुष्करार्ध द्वीप में वहीं के हिमवान आदि पर्वतों के सरोवरों में रहने वाली श्री आदि देवियाँ वहीं पर भरत-ऐरावत व विदेह क्षेत्रों में होने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा करने जाती हैं। ऐसे ही पश्चिमपुष्करार्ध द्वीप में कुलाचलों के कमलों की श्री आदि देवियाँ वहीं पर भरत-ऐरावत व विदेहों में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों की माता की सेवा के लिए जाती हैं।
जम्बूद्वीप की देवियाँ धातकीखण्ड व पुष्करार्ध द्वीप में सेवा करने नहीं जाती हैं। कुछ विद्वान् पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में कह देते हैं कि ये देवियाँ स्वर्गों से आई हैं यह गलत हैं। ये श्री आदि देवियाँ मध्यलोक से ही आती हैं। यह ध्यान रखना है। जम्बूद्वीप में एक भरत क्षेत्र, एक ऐरावत क्षेत्र व बत्तीस विदेह क्षेत्र हैं। ऐसे ही पूर्व- धातकी-पश्चिमधातकी व पूर्वपुष्करार्ध तथा पश्चिमपुष्करार्ध द्वीपों में १-१ भरत, १-१ ऐरावत व ३२-३२ विदेह क्षेत्र हैं। इसलिए ढाईद्वीप में ५ भरत, ५ ऐरावत व ३२²५·१६० विदेह क्षेत्र हो जाते हैं। इन ५±५±१६०·१७० कर्मभूमियों में तीर्थंकर भगवान जन्म लेते हैं। जम्बूद्वीप, पूर्व-पश्चिम धातकीखण्ड व पूर्व-पश्चिम पुष्करार्धद्वीप में हिमवान आदि छह-छह सरोवरों में ये देवियाँ रहती हैं। ढाई द्वीप के ये श्री आदि देवियों के सरोवर ६²५·३० ही हैं। यह ध्यान में रखना है।