सुरेश- गुरु जी पिता जी कहते हैं कि रोज तीर्थ वंदना पढ़ा करो, बहुत पुण्य मिलता है सो तीर्थ क्या है ?
अध्यापक- हाँ सुरेश! तुमने प्रश्न तो बहुत अच्छा किया है, सभी बालको सुनों-जिससे संसार समुद्र तिरा जाये उसे तीर्थ कहते हैं।
इस लक्षण से तो अर्हंत भगवान का धर्म ही सच्चा तीर्थ है तथा तीर्थंकर आदि महापुरुषों ने जहाँ जन्म लिया है या जहाँ से मोक्ष गये हैं या जहाँ पर अन्य कल्याणक हुए हैं ऐसे पंचकल्याणक स्थानों को भी तीर्थ कहते हैं क्योंकि महापुरुषों के चरणरज से वे स्थान भी पवित्र हो गये हैं।
नरेश- हमारी माँ कहा करती हैं कि मनुष्य पर्याय पाकर जीवन में सम्मेदशिखर की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। ऐसा क्यों ?
अध्यापक-यों तो गिरनार, चम्पापुर, पावापुर, अयोध्या, हस्तिनापुर आदि सभी तीर्थों की वंदना करना चाहिए। फिर भी सम्मेदशिखर के दर्शन का एक विशेष महत्त्व है।
‘‘एक बार वंदे जो कोई।
ताहि नरक पशु गति नहिं होई’’।
जो एक बार भी सम्मेदशिखर के पवित्र टोंकों की वंदना कर लेता है, वह जीव उस भव से मरकर नरक गति और तिर्यंच गति में नहीं जाता है नियम से वह जीव भव्य है-अवश्य ही मोक्ष प्राप्त करेगा और तो क्या वह उनंचास भव से अधिक भव नहीं धारण कर सकता है। नियम से वह भव्य इसके अंदर ही अंदर मोक्ष चला जायेगा। अत: बालकों! तुम्हें सम्मेदशिखर महातीर्थ की यात्रा अवश्य करना चाहिए।