(१) धर्म प्रभावना दानतीर्थ में, जितना भी विस्तार दिया है।
कुण्डलपुर या नालंदा हो, सपना प्रयाग साकार किया है।।
जम्बूद्वीप तो अमरद्वीप है, उसका कोई ना सानी है।
माताजी के उपकारों का, ऋणी हुआ हर प्राणी है।।
(२) पल-पल कठिन परीक्षा देकर, चुनौतियों को हरा दिया है।
बाधाओं को झेला हँसकर, रस-विष सब स्वीकार किया है।।
खुद कल्याण मार्ग अपनाया, हमें वही पथ दिखलाया है।
शेष बचे जीवन को माँ ने, समझो हमें उधार दिया है।।
(३) आशीष आपका पाकर माँ, गल दंभ, नीर हो जाता है।
दृष्टि पड़ जाये यदि माँ की, तो जहर खीर हो जाता है।।
स्पर्श आपका पाकर के, कोयला हीरा हो जाता है।
साहित्य सृजक गुणगान करें, तो तुलसी कबीर हो जाता है।।
(४) माताजी की अमृतवाणी, हम सबका मन हर लेती है।
दिव्याकर्षण है तुममें ऐसा, भक्तिवश में कर लेती है।।
अंतर्मन खिल जाता उसका, जो पास आपके आता है।
चरणों की रज पाकर के माँ, पतझड़ बसंत हो जाता है।।
(५) तुमने जो कीर्तिमान तिष्ठे, युग-युग भी भुला न पायेंगे।
जो संस्कार के बीज दिये, तरुवर बनकर यश गायेंगे।।
श्रीचरणों में मेरा प्रणाम, अवलंबन दो, स्वीकारो माँ।
तुम साक्षात् शुचि शारद हो, कवि हृदयासन पे पधारो माँ।।