इसके बाद सुषम दुष्षमा काल के प्रारंभ में मनुष्यों की आयु एक पूर्व कोटि वर्ष प्रमाण होती है। उस समय उन मनुष्यों की ऊँचाई पाँच सौ धनुष प्रमाण होती है, पुन: क्रम से उत्तरोत्तर आयु और ऊँचाई प्रत्येक काल के बल से बढ़ती ही जाती है। इस समय यह पृथ्वी जघन्य भोग भूमि कही जाती है। इस काल के अंत में मनुष्यों की आयु एक पल्य प्रमाण होती है उस समय मनुष्य एक कोस ऊँचे और प्रियंगु जैसे वर्ण के होते हैं। उस समय से यहाँ पर कल्पवृक्ष उत्पन्न होने लगते हैं।