—दोहा—
अनंत चतुष्टय के धनी, ऋषभदेव भगवान।
मण्डल पर पुष्पाञ्जली, करूँ प्रभू गुणगान।।
अथ मंडलस्योपरि तृतीय कोष्ठकस्थाने पुष्पांजलि क्षिपेत्।
-नाराच छंद-
तीनलोक तीनकाल की समस्त वस्तु को।
एक साथ जानता अनंत ज्ञान विश्व को।।
जो अनन्तज्ञान युक्त इन्द्र अर्चते जिन्हें।
पूजहूँ सदा उन्हें अनन्तज्ञान हेतु मैं।।१।।
ॐ ह्रीं अनंतज्ञानगुणसमन्विताय तथैवफलप्रदाय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
लोक औ अलोक के समस्त ही पदार्थ को।
एक साथ देखता अनन्त दर्श सर्व को।।
जो अनन्त दर्श युक्त इन्द्र अर्चते उन्हें।
पूजहूँ सदा उन्हें अनन्त दर्श हेतु मैं।।२।।
ॐ ह्रीं अनंतदर्शनगुणसमन्विताय तथैवफलप्रदाय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
बाधहीन जो अनन्त सौख्य भोगते सदा।
हो भले अनन्तकाल आवते न ह्यां कदा।।
वे अनन्त सौख्य युक्त इन्द्र अर्चते उन्हें।
पूजहूँ सदा तिन्हें अनन्त सौख्य हेतु मैं।।३।।
ॐ ह्रीं अनंतसौख्यगुणसमन्विताय तथैवफलप्रदाय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जो अनन्त वीर्यवान अंतराय को हने।
तिष्ठते अनन्तकाल श्रम नहीं कभी उन्हें।।
जो अनन्त शक्ति युक्त इन्द्र अर्चते उन्हें।
पूजहूँ सदा तिन्हें अनन्तवीर्य हेतु मैं।।४।।
ॐ ह्रीं अनंतवीर्यगुणसमन्विताय तथैवफलप्रदाय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य— (शंभु छंद)
जो ज्ञान अनंत प्राप्त करके, त्रैलोक्य चराचर जान रहे।
जो दर्श अनंत प्राप्त करके, सम्पूर्ण विश्व को देख रहे।।
आनन्त्य सौख्य को प्राप्त किया, आनन्त्य वीर्य के धारी हैं।
ऐसे तीर्थंकर की पूजा, आनन्त्य चतुष्टयकारी है।।१।।
ॐ ह्रीं अनंतचतुष्टयसमन्विताय श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
—छ्यालिस गुणों का पूर्णार्घ्य—
दश अतिशय जन्म समय से ग्यारह, केवलज्ञान उदय से हों।
देवों कृत तेरह अतिशय हों, चौंतिस अतिशय सब मिल के हों।।
वर प्रातिहार्य हैं आठ कहें, आनंत्य चतुष्टय चार कहें।
ये छ्यालिस गुण वृषभेश्वर के, हम पूजें वांछित सर्व लहें।।२।।
ॐ ह्रीं षट्चत्वािंरशत्गुणसमन्विताय सर्वातिशायिफलप्रदाय श्रीऋषभदेव-तीर्थंकराय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।