—दोहा—
बत्तिस देश विदेह में, बत्तिस आरजखंड।
गणिनी मात व आर्यिका, जजूँ पुष्प विकिरंत।।१।।
इति मंडलस्योपरि तृतीयवलये पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
-शंभुछंद-
कच्छा विदेह के आर्यखंड, में क्षेमा नगरी रजधानी।
उस शाश्वत कर्मभूमि में नित, तीर्थंकर होते शिवगामी।।
मुनिगण होते गणिनी माता, आर्यिकायें होती रहती हैं।
हम उनको पूजें अर्घ्य चढ़ा, संयम की लब्धि मिलती है।।१।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपस्थकच्छादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे क्षेमानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
है देश सुकच्छा आर्यखंड, मधि क्षेमपुरी नगरी जानो।
उसमें नित होते तीर्थंकर, वहाँ शाश्वत कर्मभूमि मानो।।
मुनिगण गणिनी माता व, आर्यिकायें होती हैं सदा।
उन सबकी पूजा करने से, हो सब पापों का अंत यहाँ।।२।।
ॐ ह्रीं सुकच्छादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे क्षेमपुरीनगर्यां गणिनीप्रमुख-सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
है देश महाकच्छा विदेह, उस आर्यखंड के ठीक बीच।
विख्यात अरिष्टा नगरी में, तीर्थंकर होते जगत ईश।।
उनमें गणिनी संयतिका को, प्रणमूँ मैं भक्ति भाव पूर्वक।
निज आत्मानंद स्वभावी हैं, उनको नित पूजूं रुचिपूर्वक।।३।।
ॐ ह्रीं महाकच्छादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे अरिष्टानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कच्छावति देश विदेह मध्य, आरजखंड बीच अरिष्टपुरी।
इस नगरी में हों तीर्थंकर, जो धर्मतीर्थ के हैं चक्री।।
वहां मुनिगण गणिनी माता को, आर्यिकाओं को वंदन करके।
हम पूजें अर्घ चढ़ा करके, वे भक्तों को संयम निधि दें।।४।।
ॐ ह्रीं कच्छावतीदेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे अरिष्टपुरीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आवर्ता देश विदेह कहा, उसमें आंरजखंड शाश्वत है।
उनके मधि है खड्गा नगरी में तीर्थंकर धर्मतीर्थ पति हैं।।
वहाँ मुनिगण गणिनी संयतिका, उनकी भक्ती अर्चा करते।
निज परमाह्लाद प्रगट होता, जिसके बल पूर्ण सुखी बनते।।५।।
ॐ ह्रीं आवर्तादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे खड्गानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ देश लांगलावर्ता है, उसमें इक आर्यखंड उत्तम।
तीर्थंकर चक्री नारायण, प्रतिनारायण बलदेवोत्तम।।
ये पुरुष शलाका वहाँ नित्य, मंजूषा नगरी में होते।
यहाँ गणिनी माता आर्यिकायें, उनको पूजें हम नत होके।।६।।
ॐ ह्रीं लांगलावर्तादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे मंजूषानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पुष्कला देश सप्तम विदेह, उसमें जो आरजखंड रहे।
इस बीच औषधी नगरी है, उसमें तीर्थंकर सतत रहे।।
वहाँ आर्यिकायें गणिनी माता, नित मोक्ष मार्ग दिखलाती हैं।
हम पूजें अर्घ चढ़ा करके, हमको वह राह दिखाती हैं।।७।।
ॐ ह्रीं पुष्कलादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे औषधीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पुष्कलावती अष्टमविदेह, इसमें छ: खण्ड कहे जाते।
है आर्य खण्ड में पुंडरीकणी, नगरी उसमें सुर आते।।
इसमें मुनिगण गणिनीमाता, संयतिकायें भव दुख हरती।
श्री सीमन्धर प्रभु वर्तमान, इन सबकी पूजा भव हरती।।८।।
ॐ ह्रीं पुष्कलावतीदेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे पुण्डरीकिणीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
—रोला छंद—
वत्सादेशविदेह, आर्य खण्ड है उसमें।
पुरी सुसीमा एक, रजधानी है उसमें।।
मुनी आर्यिकावंद्य, मैं पूजूं नित रुचिकर।
युगमंधर भगवान, विचरें अभी वहाँ पर।।९।।
ॐ ह्रीं वत्सादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे सुसीमानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश सुवत्सारम्य, आर्यखण्ड उसमें हैं।
पुरी कुण्डला एक, तीर्थंकर उसमें हैं।।
गणिनी श्रमणीमात, उन सबको मैं पूजूँ।
आत्म सुधारस पाय, भव—भव दु:ख से छूटूँ।।१०।।
ॐ ह्रीं सुवत्सादेशविदेहसंबंधि-आर्यखण्डे कुण्डलानगर्यां गणिनीप्रमुख-सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
महावत्सा शुभदेश, उसके आरजखंड में।
अपराजिता प्रसिद्ध, नगरी है उस मधि में।।
तीर्थंकर भगवान, जन्म वहीं पर लेते।
गणिनी श्रमणी मात, पूजत सब सुख देते।।११।।
ॐ ह्रीं महावत्सादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे अपराजितानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वत्सावतीविदेह उसके आरजखंड में।
तीर्थंकर नित होय नगरी प्रभंकरा में।।
मुनिगण गणिनी मात, संयतिकायें वहाँ पे।
पूजूँ भक्ति समेत, छूटूँ भवभव दु:ख से।।१२।।
ॐ ह्रीं वत्सावतीदेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे प्रभंकरानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
रम्यादेश विदेह, आर्यखण्ड है उसमें।
अंका नगरी नित्य, तीर्थंकर हो उसमें।।
मुनिगण गणिनी मात, आर्यिकायें क्षेमंकर।
उनको अर्घ्य चढ़ाय, पाऊँ सौख्य हितंकर।।१३।।
ॐ ह्रीं रम्यादेशविदेहसंबंधि-आर्यखण्डे अंकानगर्याम् गणिनीप्रमुख-सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश सुरम्या रम्य, आर्यखंड उसमें है।
तीर्थंकर से युक्त, पद्मावति नगरी है।।
मुनिगण गणिनी मात आर्यिकायें हैं वहाँ पे।
पूजूँ भक्ति समेत, मेरे मन को शोधें।।१४।।
ॐ ह्रीं सुरम्यादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे पद्मावतीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
रमणीया शुभदेश, नगरी शुभा वहाँ पर।
तीर्थंकर परमेश, होते रहते सुखकर।।
मुनिगण गणिनी मात, आर्यिकाओं की भूमी।
उन सबको नित पूजूँ, मिले हमें शिवभूमी।।१५।।
ॐ ह्रीं रमणीयादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे शुभानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश मंगलावति में, आर्यखंड मधि नगरी।
रत्न संचया नाम, तीर्थंकर गुण लहरी।।
मुनिगण गणिनी मात, आर्यिकायें सुखदायी।
पूज हरूँ भवक्लेश, सुख पाऊँ अतिशायी।।१६।।
ॐ ह्रीं मंगलावतीदेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे रत्नसंचयानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
—दोहा—
पद्मा देश विदेह में, आर्यखण्ड के मध्य।
अश्वपुरी में तीर्थकर, आर्यिकायें जग वंद्य।।७।।
ॐ ह्रीं पद्मादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे अश्वपुरीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश सुपद्मा खंड षट्, आरजखंड के मध्य।
िंसहपुरी में तीर्थकर, आर्यिकायें जग वंद्य।।१८।।
ॐ ह्रीं सुपद्मादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे सिंहपुरीनगर्यां गणिनीप्रमुख-सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश महापद्मा वहाँ, आर्यखंड के मध्य।
महापुरी में तीर्थकर, जजूँ आर्यिका नित्य।।१९।।
ॐ ह्रीं महापद्मादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे महापुरीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश पद्मकावति वहां, आर्यखंड के मध्य।
विजयपुरी में तीर्थकर, जजूँ आर्यिका नित्य।।२०।।
ॐ ह्रीं पद्मकावतीदेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे विजयपुरीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शंखा देश विदेह में, आर्यखंड के बीच।
अरजानगरी में जजूँ, आर्यिकायें नतशीश।।२१।।
ॐ ह्रीं शंखादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे अरजानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
नलिनी देश विदेह में, आर्यखंड के बीच।
विरजा नगरी में जजूँ, आर्यिकायें नत शीश।।२२।।
ॐ ह्रीं नलिनीदेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे विरजानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कुमुदा देश विदेह के, आर्यखंड में नित्य।
पुरी अशोका में जजूँ, आर्यिकायें हों नित्य।।२३।।
ॐ ह्रीं कुमुदादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे कुमुदानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सरिता देश विदेह में, आर्यखंड विख्यात।
वीतशोक नगरी वहाँ, आर्यिकायें हैं आज।।२४।।
ॐ ह्रीं सरितादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे वीतशोकानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
—चौपाई—
वप्रादेश विदेह महान्, उसमें आर्यखंड सुखदान।
विजयानगरी में तीर्थेश, आर्यिकाओं को जजूँ हमेश।।२५।।
ॐ ह्रीं वप्रादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे विजयानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश सुवप्रा कहा विदेह, उसके आर्यखंड में येह।
नगरी वैजयंति सुखदान, संयतिका पद जजूँ महान।।२६।।
ॐ ह्रीं सुवप्रादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे वैजयंतीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश महावप्रा के मध्य, आर्यखंड में नगरी भव्य।
नाम जयंती में तीर्थेश, आर्यिकाओं को नमूँ हमेश।।२७।।
ॐ ह्रीं महावप्रादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे जयंतीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश वप्रकावती विदेह, आर्यखंड के बीच वसेय।
अपराजिता नगरि में नित्य, आर्यिकायें हो पूजूँ नित्य।।२८।।
ॐ ह्रीं वप्रकावतीदेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे अपराजितानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
गंधा देश विदेह अनूप, आर्यखंड में नगरी भूप।
चक्रपुरी में पूजूँ आज, आर्यिकाओं को पूजूँ आज।।२९।।
ॐ ह्रीं गंधादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे चक्रपुरीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश सुगंधा नाम विदेह, उसका आर्यखंड शुभ येह।
खड्गपुरी में होती सदा, आर्यिकायें उन पूजूँ मुदा।।३०।।
ॐ ह्रीं सुगंधादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे खड्गपुरीनगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देश गंधिला में षट्खंड, उसमें इक शुभ आरजखंड।
पुरी अयोध्या में तीर्थेश, आर्यिकाओं को जजूँ हमेश।।३१।।
ॐ ह्रीं गंधिलादेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे अयोध्यानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
गंधमालिनी देश विदेह, आर्यखंड में नगरी येह।
पुरी अवध्या में तीर्थेश, जजूँ आर्यिका भक्ति हमेश।।३२।।
ॐ ह्रीं गंधमालिनीदेशविदेहसंबंधि-आर्यखंडे अवध्यानगर्यां गणिनीप्रमुख- सर्वार्यिकाभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
—पूर्णार्घ्य-दोहा—
जम्बूद्वीप विदेह में, समवसरण में मान्य।
गणिनी माता आर्यिका, जजत मिले सुख साम्य।।१।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधिद्वात्रिंशद्विदेहक्षेत्रस्थतीर्थंकरसमवसरणस्थितगणिनी-प्रमुखसर्वार्यिकाभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।