Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
तेरहद्वीप पूजा
August 24, 2020
पूजायें
jambudweep
तेरहद्वीप पूजा
तेरहद्वीप जिनालय व्रत (मध्यलोक जिनालय व्रत) एवम तेरहद्वीप व्रत (लघु)
दोहा
स्वयंसिद्ध ये द्वीप हैं, तेरहद्वीप महान।
सब द्वीपों में जिनभवन, अनुपम रत्न निधान।।१।।
चउ शत अट्ठावन यहाँ, जिनमंदिर अभिराम।
तीर्थंकर जिन केवली, साधु शील गुण खान।।२।।
इन सब की पूजा करूँ, आत्मशुद्धि के हेतु।
जिन पूजा चिंतामणी, मन चिंतित फल देत।।३।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्ब-तीर्थंकरकेवलिसर्वसाधु समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्ब-तीर्थंकरकेवलिसर्वसाधु समूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्ब-तीर्थंकरकेवलिसर्वसाधु समूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अथाष्टक
शंभु छंद
सुर सरिता का उज्ज्वल जल ले, कंचन झारी भर लाया हूँ।
भव भव की तृषा बुझाने को, त्रय धारा देने आया हूँ।।
तेरहद्वीपों में जिनमंदिर, कृत्रिम अकृत्रिम जितने हैं।
तीर्थंकर केवलि सर्वसाधु, उन सबको मेरा वंदन है।।१।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।
वर अष्ट गंध सुरभित लेकर, तुम चरण चढ़ाने आया हूँ।
भव भव संताप मिटाने औ, समता रस पीने आया हूँ।।
तेरहद्वीपों में जिनमंदिर, कृत्रिम अकृत्रिम जितने हैं।
तीर्थंकर केवलि सर्वसाधु, उन सबको मेरा वंदन है।।२।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
शशि किरणों सम उज्ज्वल तंदुल, धोकर थाली भर लाया हूँ।
निज आतम गुण के पुंज हेतु, यह पुंज चढ़ाने आया हूँ।।
तेरहद्वीपों में जिनमंदिर, कृत्रिम अकृत्रिम जितने हैं।
तीर्थंकर केवलि सर्वसाधु, उन सबको मेरा वंदन है।।३।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
कुवलय बेला वर मौलसिरी, मचकुन्द कमल ले आया हूँ।
शृंगार हार कामारिजयी, जिनवर पद यजने आया हूँ।।
तेरहद्वीपों में जिनमंदिर, कृत्रिम अकृत्रिम जितने हैं।
तीर्थंकर केवलि सर्वसाधु, उन सबको मेरा वंदन है।।४।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
मोदक फेनी घेवर ताजे, पकवान बनाकर लाया हूँ।
निज आतम अनुभव चखने को, नैवेद्य चढ़ाने आया हूँ।।
तेरहद्वीपों में जिनमंदिर, कृत्रिम अकृत्रिम जितने हैं।
तीर्थंकर केवलि सर्वसाधु, उन सबको मेरा वंदन है।।५।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक ज्योती के जलते ही, अज्ञान अंधेरा भगता है।
इस हेतू से दीपक पूजा, करते ही ज्ञान चमकता है।।
तेरहद्वीपों में जिनमंदिर, कृत्रिम अकृत्रिम जितने हैं।
तीर्थंकर केवलि सर्वसाधु, उन सबको मेरा वंदन है।।६।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूपायन में वर धूप खेय, दशदिश में धूम उठे भारी।
बहु जनम जनम के संचित भी, दु:खकर सब कर्म जलें भारी।।
तेरहद्वीपों में जिनमंदिर, कृत्रिम अकृत्रिम जितने हैं।
तीर्थंकर केवलि सर्वसाधु, उन सबको मेरा वंदन है।।७।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
वर आम्र बिजौरा नींबू औ, गन्ना मीठा ले आया हूँ।
शिव कांता सत्वर वरने की, बस आशा लेकर आया हूँ।।
तेरहद्वीपों में जिनमंदिर, कृत्रिम अकृत्रिम जितने हैं।
तीर्थंकर केवलि सर्वसाधु, उन सबको मेरा वंदन है।।८।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल चंदन अक्षत फूल चरू, वर दीप धूप फल लाया हूँ।
तुम चरणों अर्घ चढ़ा करके, भव संकट हरने आया हूँ।।
तेरहद्वीपों में जिनमंदिर, कृत्रिम अकृत्रिम जितने हैं।
तीर्थंकर केवलि सर्वसाधु, उन सबको मेरा वंदन है।।९।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
सोरठा
क्षीरोदधि समश्वेत, उज्ज्वल जल ले भृंग में।
श्री जिनचरण सरोज, धारा देते भव मिटे।।१०।।
शांतये शांतिधारा।।
सुरतरु के सुम लाय, प्रभु पद में अर्पण करूँ।
कामदेव मद नाश, पाऊँ आनन्द धाम मैं।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।।
समुच्चय मंत्र-
ॐ ह्रीं अर्हं त्रयोदशद्वीपसंबंधिनवदेवताभ्यो नम:।
जयमाला
परम ज्योति परमात्मा, सकल विमल चिद्रूप।
जिनवर गणधर साधुगण, नमूँ नमूँ निजरूप।।१।।
शंभु छंद
जय जय पाँचों मेरू के जिन-मंदिर हैं शाश्वत रत्नमयी।
जय जय जिनमंदिर बीसों ही, गजदंतगिरी के स्वर्णमयी।।
जय जय जंबूतरु शाल्मलि के, दश जिनमंदिर महिमाशाली।
जय जय वक्षारगिरी के भी, अस्सी जिनगृह गरिमाशाली।।२।।
जय इक सौ सत्तर विजयारध के, सब जिनमंदिर सुखकारी।
जय जय तीसों कुल पर्वत के, तीसों जिनगृह भव दु:खहारी।।
इष्वाकृति मनुजोत्तर पर्वत के, चार चार जिनमंदिर हैं।
नंदीश्वर के बावन अतिशय, शाश्वत जिनमंदिर मनहर हैं।।३।।
कुण्डलगिरि रुचकगिरी के भी, हैं चार-चार मंदिर सुंदर।
प्रतिजिनगृह में जिन प्रतिमाएँ हैं, इक सौ आठ कही मनहर।।
सब रत्नमयी जिनप्रतिमाएं, जिनवर भक्ती सम फल देतीं।
भक्तों की इच्छा पूर्तीकर, अंतिम शिव में पहुँचा देतीं।।४।।
पांचों मेरू के पांडुक वन, विदिशा में चार शिलाएँ हैं।
तीर्थंकर के जन्माभिषेक से, पावन पूज्य शिलाएँ हैं।।
पण भरत पाँच ऐरावत में, होते हैं चौबिस तीर्थंकर।
केवलि श्रुतकेवलि गणधर मुनि, साधूगण होते क्षेमंकर।।५।।
उनके कल्याणक से पवित्र, पृथिवी पर्वत भी तीर्थ बने।
जो उनकी पूजा करते हैं, उनके मनवांछित कार्य बनें।।
सब इक सौ साठ विदेहों में, सीमंधर युगमंधर स्वामी।
बाहू सुबाहु आदिक विहरें, केवलज्ञानी अन्तर्यामी।।६।।
उन सर्व विदेहों में संतत, तीर्थंकर होते रहते हैं।
केवलज्ञानी चारणऋद्धी, मुनिगण वहाँ विचरण करते हैं।।
आकाशगमन करने वाले, ऋषिगण मेरू पर जाते हैं।
निज आत्म सुधारस स्वादी भी, जिनवंदन कर हर्षाते हैं।।७।।
तेरहद्वीपों के चार शतक, अट्ठावन मंदिर को वंदन।
जितने भी कृत्रिम जिनगृह हों, उन सबको भी शत-शत वंदन।।
जितने तीर्थंकर हुए यहाँ, हो रहे और भी होवेंगे।
उन सबको मेरा वंदन है, वे मेरा कलिमल धोवेंगे।।८।।
आचार्य उपाध्याय साधूगण, जो भी इन कर्मभूमियों में।
चिन्मय आत्मा को ध्याते हैं, सुस्थिर होकर निज आत्मा में।।
वे घाति चतुष्टय घात पुन:, अरिहंत अवस्था पाते हैं।
इन कर्मभूमि से ही फिर वे, भगवान सिद्ध बन जाते हैं।।९।।
दोहा
पंच परमगुरु जिनधरम, जिनवाणी जिन गेह।
जिन प्रतिमा को नित नमूँ, ‘ज्ञानमती’ धर नेह।।१०।।
ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधिकृत्रिमाकृत्रिमजिनालय-जिनबिम्बतीर्थंकरकेवलिसर्वसाधुभ्य: जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
तेरहद्वीपों का नमन, करे विघ्न घन चूर।
सर्व अमंगल दूर कर, भरे सौख्य भरपूर।।११।।
।। इत्याशीर्वाद: ।।
Tags:
Vrat's Puja
Previous post
तीर्थंकर पंचकल्याणक पूजा
Next post
देव-शास्त्र-गुरु पूजा
Related Articles
श्री शांति-कुन्थु-अर तीर्थंकर पूजा!
May 22, 2015
jambudweep
बीस तीर्थंकर पूजा
July 19, 2020
jambudweep
गणधरवलय पूजा
August 4, 2020
jambudweep
error:
Content is protected !!