[[श्रेणी:जैनधर्म_में_आयुर्वेद_का_महत्व]] ==
दमा बड़ी तकलीफ देह बीमारी है। वायु का प्रकोप ही इस बीमारी का प्रमुख कारण है। जब वायु के निकलने की राह कफ से अवरोधित हो जाती है, तभी दम फूलता है। इसमें सांस लेने में बड़ी कठिनाई होती है। ऐसा मालूम होता रहता है कि सांस अब अटकी, तब अटकी। रोगी तोड़ तोड़कर थोड़ी—थोड़ी सांस खींचता रहता है। इसमें सांस छोड़ने में अत्यधिक कठिनाई उपस्थित होती है। ली गयी सांस जरूरत के मुताबिक बाहर नहीं हो पाती है। इसमें दम घुटने लगता है। गले में हमेशा आवाज सी होती रहती है। जब ज्ञान शक्ति का लोप हो जाता है। इसलिए जब यह बीमारी शुरु हो तभी इसके इलाज के लिए तत्पर हो जाना चाहिए। दमा की पुरानी बीमारी को उचित औषधियों द्वारा रोककर तो रखा जा सकता है। परंतु जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता। दमा की बीमारी पर कुछ अनुभूत एवं परीक्षित दमाग्रस्त रोगी दमा की तकलीफ से निजात पा सकते हैं। इन औषधियों के प्रयोग से पूर्व अपने स्थानीय चिकित्सक की सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।
(१) रोज शाम को शुद्ध सरसों के तेल में दो तोला गुड़ (पुराना गुड़) पीने से दमा का दौरा कम पड़ता है।
(२) धतूरे के पत्ते फूल और टहनियों को सुखाकर रख लीजिए और तम्बाकू की तरह चिलम में भरकर कश लीजिए। इससे दमा का दम घुटना कम होता है।
(३) सोरा नमक धोले हुए पानी में कागज को डुबो कर धुप में सुखा लीजिए। सूख जाने पर कागज को बीड़ी की तरह बनाकर पीजिए। उसका धुंआ गले को साफ करता है।
(४) दो तोला अदरख का रस, दो तोला सीजू की छाल के रस में मिलाकर किसी दिन अमावस्या और पूर्णिमा हो तो बेहतर सवेरे रोगी को पिलाइए। दस्त और उल्टियां जमें हुए कफ को निकालती है, हानिकारक नहीं होती। रोगी को एक बार की ही क्रिया से चंगा हो जाता है। तीन महीने तक तंबाकू मांस, दही, मछली आदि से परहेज रखना चाहिए। गर्भवती औरत एवं पन्द्रह वर्ष से कम उम्र के बच्चों का दवा का प्रयोग हानि पहुंचा सकता है अत: वे इस औषधि का प्रयोग न करे।
(५) बड़ी हर्रे और सोंठ का चूर्ण बनाकर गर्म पानी के साथ पिलाइए।
(६) किशमिश, मिर्च लाल, हल्दी पीपर, सोंठ और रास्ना, इन सभी चीजों को पीस लें। फिर उसे पुराने गुड़ और शुद्ध सरसोंके तेल में मिला लें इस दवा से दमा जल्द से जल्द शांत होता है।
(७) सरसों के तेल में बेल और वासक के पत्ते का रस निचोड़ कर दिन में तीन बार पिलाइए।
(८) लगभग दो आने भर सेंधा नमक, दो आने भर पीपर के चूर्ण में अदरख का रस मिलाकर नित्य रात को सोते समय चटाने से रात में दौरा शांत रहता है।
(९) डेढ़ तोला जीरा और एक तोला सफेद पुनर्नवा की जड़ में ढ़ाई कालीमिर्च मिलाकर एक गोली बनाकर सुबह खाली पेट एक ही बार रख लें। खाने के एक—डेढ़ घंटे बाद पावभर गाय का दूध पी लें। यह औषधि मात्र एक ही बार खानी होती है। प्रात: भोजन करने के पश्चात एक घण्टा शुरु। हवा में घूमें।
(१०) छाती पर गरम ठण्डे पानी का सेक भी लाभदायक है। दमें के रोगियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनको कब्जियत की शिकायत न हो। अगर कब्ज हो तो पेट साफ करने का उपाय करना चाहिए। १. कब्ज दूर करने के लिए ५ मुन्नका ५ किशमिश रात्रि को पानी में भिगो दें एवं प्रात: काल सेवन करें। २. रात्रि को नवाये पानी में २ चम्मच इसबगोल भूसी मिलाकर लेंवे। ३. रात्रि को सोने से पहले २ चम्मच दूध में १/२ चम्मच एरण्डी का तेल पी लेंवे उसके बाद १ गिलास दूध में २ चम्मच इसबगोल की भूसी मिलाकर लेंवें।
‘शुचि’ मासिक , अगस्त २०१४