एक सोनार के घर के बाहर एक लोहार भी अपना कार्य करता था। लोहे के पीटने की जोर से आवाज आती थी। एक रात्रि सोने ने लोहे से कहा—भाई मैं रोज तुम्हारे जोर—जोर से कराहने की आवाज सुनता हूँ क्या बात है? लोहे नो कहा—मुझे पहले अग्नि में तपाया जाता है ? फिर पीटा जाता है। सोने ने कहा—भाई मुझे भी सोनार अग्नि में तपाता है और पीटता भी है फिर भी मैं सहन कर लेता हूँ तुम्हारी तरह जोर—जोर से आवाज नहीं करता। लोहे ने आह भरते हुए कहा कि भाई तुम्हारे और मेरे पीटे जाने में अन्तर है। तुम दूसरे धातु से पीटे जाते हो और मुझे अपनी ही जात की हथौड़ी पीटती है। सच है, अपनों के द्वारा पहुँचाई गई चोट ज्यादा दर्दनाक होती है।