शंका-सत्तामात्र अवलोकन रूप दर्शन वैâसे उत्पन्न होता है ?
समाधान-इंद्रिय और पदार्थ का योग होने पर होता है। अक्ष-इन्द्रियाँ-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच इंद्रियाँ हैं और मन यह छठी इन्द्रिय है (इसे अनिंद्रिय भी कहते हैं)। उन इन्द्रियों के दो भेद हैं-द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय। उसमें पुद्गलपरिणाम को द्रव्येन्द्रिय कहते हैं। उसके भी निर्वृत्ति और उपकरण दो भेद हैं। जीव के परिणाम को भावेन्द्रिय कहते हैं। उसके लब्धि और उपयोग ऐसे दो भेद हैं।
अर्थ ग्रहण की शक्ति का नाम लब्धि है और अर्थ ग्रहण के व्यापार का नाम उपयोग है।
(इन्द्रिय के आकार की रचना को निर्वृत्ति तथा उनके सहायक अवयवों को उपकरण कहते हैं।)
‘निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम्, लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम्१’ ऐसा सूत्रकार का वचन है।
शंका-मन को इंद्रिय वैâसे कहा है ?
समाधान-अंत:करण रूप होने से मन का इन्द्रियपने से विरोध नहीं है।
विषय को अर्थ कहते हैं। उन इन्द्रिय और अर्थ का योग्य देश में अवस्थान होना योग कहलाता है, उसके होने पर होता है अर्थात् इन्द्रिय और विषय के योग्य देश में रहने पर वह दर्शन उत्पन्न होता है।
शंका-ऐसा मानने पर तो इन्द्रिय के समान पदार्थ भी दर्शन की उत्पत्ति में कारण हो जावेंगे ?
समाधान-ऐसा नहीं कहना, क्योंकि पदार्थ में व्यापार नहीं देखा जाता है और दर्शन का पदार्थ के साथ अन्वय व्यतिरेक भी नहीं है, केश में मच्छर के ज्ञान के समान अर्थात् जहाँ-जहाँ पदार्थ हो वहीं-वहीं पर दर्शन उत्पन्न हो और जहाँ-जहाँ पदार्थ न हो वहाँ-वहाँ दर्शन उत्पन्न न हो, इसको अन्वय-व्यतिरेक कहते हैं। यह नहीं देखा जाता है प्रत्युत् केश में मच्छर का ज्ञान हो जाता है। यदि पदार्थ के निमित्त से दर्शन या ज्ञान उत्पन्न होते तो केशों में केश का ही ज्ञान होता, न कि मच्छर का।
देखिये! नेत्र आदि के व्यापार के समान पदार्थ का व्यापार ज्ञान की उत्पत्ति में कारण नहीं देखा जाता है क्योंकि वे पदार्थ तो उदासीनरूप ही हैं।