—प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
पर्वराज पर्यूषण जग में है अनादि अनिधन माना।
दशलक्षण के नाम से यह प्राचीन काल से है माना।।
जैसे एक एक सीढ़ी चढ़ महल पे पहुँचा जाता है।
वैसे ही दशधर्म पालकर मानव शिवपद पाता है।।१।।
भादों माघ चैत्र महिने में तीन बार यह आता है।
शुक्ला पंचमि से चौदश तक इसे मनाया जाता है।।
मलिन आत्मा को निर्मल करने हेतू यह आता है।
आत्म तत्त्व का सार समझने में निमित्त बन जाता है।।२।।
दशलक्षण व्रत के संग इसमें कई और व्रत आते हैं।
जो श्रद्धालु नर नारी द्वारा अपनाए जाते हैं।।
पहले पाँच दिनों तक पंचमेरु पुष्पांजलि व्रत आता।
श्री व्रत आकाशपंचमी अरु निर्दोष सप्तमी व्रत आता।।३।।
है नि:शल्य अष्टमी एवं फिर सुगंध दशमी व्रत है।
पुन: द्वादशीव्रत करके करना सुन्दर अनन्त व्रत है।।
तेरह चौदस पूनों को रत्नत्रय व्रत पालन कर लो।
एकाशन उपवास आदि कर जिनवर का अर्चन कर लो।।४।।
दशलक्षण के नाम से दशधर्मों का सार समझना है।
शक्ती के अनुसार इन्हीं धर्मों को धारण करना है।।
उत्तम क्षमा धर्म के द्वारा क्रोध शत्रु पर विजय करो।
प्रथमाचार्य शांतिसागर मुनि का जीवन स्मरण करो।।५।।
क्षमा-शांति के द्वारा जिनने सर्प का विष भी शांत किया।
जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में मन नहिं भ्रान्त किया।।
मार्दव आर्जव सत्य शौच संयम तप त्याग ग्रहण कर लो।
उत्तम आकिंचन्य व उत्तम ब्रह्मचर्य पालन कर लो।।६।।
इन सबका उत्कृष्ट रूप में पालन मुनिवर ही करते।
श्रावक भी इन दशों धर्म का आंशिक पालन कर सकते।।
भाद्रमास में श्रावक जन अतिशय प्रभावना करते हैं।
सामूहिक पूजन विधान कर गुरु के प्रवचन सुनते हैं।।७।।
दशलक्षण व्रत की महिमा का सच्चा एक कथानक है।
धातकि खण्ड द्वीप के पूर्व विदेह का यह घटना क्रम है।।
राजा-मंत्री-सेठ और ब्राह्मण की चार सुताएं थीं।
धर्माराधना में तत्पर चारों की पुण्य कथाएं थीं।।८।।
चारों ने मिलकर एक बार वन में मुनिवर के दर्श किये।
गुरुवर के प्रवचन सुनकर सबने उनसे सुंदर प्रश्न किये।।
स्त्रीलिंग छेदने का मारग बतलाओ हे गुरुवर!
तब गुरु ने उनको बतलाया दशलक्षण का व्रत सुखकर।।९।।
मुनि की साक्षीपूर्वक चारों ने व्रत को स्वीकार किया।
व्रत प्रभाव से उन चारों ने दशम स्वर्ग को प्राप्त किया।।
वहाँ से आकर भरतक्षेत्र उज्जैन नगर में जन्म लिया।
मूलभद्र राजा की रानी को चारों ने धन्य किया।।१०।।
चारों राजपुत्र ने दीक्षा धारण कर शिवपद पाया।
इस प्रकार दशलक्षण व्रत माहात्म्य जगत् को दिखलाया।।
यह दशलक्षण पर्व ‘‘चन्दनामती’’ बने मंगलकारी।
दश धर्मों का पालन करके हो जीवन सुखकारी।।११।।