सत्यधर्म पहले है या शौचधर्म प्रतिक्रमण ग्रंथत्रयी में सत्य धर्म को पहले लिया है-दसण्हं समणधम्माणं। दशानां श्रमणधर्माणामुत्तमक्षमामार्दवार्जवसत्यशौचसंयमतपस्त्यागा-किञ्चन्यब्रह्मचर्यलक्षणानाम्प्रतिक्रमण ग्रंथत्रयी-पृ. ९, १०।।श्री कुन्दकुन्ददेव कृत ‘द्वादशानुप्रेक्षा’ में ‘सत्य’ धर्म को पहले लिया है—उत्तमखममद्दवज्जवसच्चसउच्चं च संजमं चेव। तवचागमकिंचण्हं बम्हा इदि दसविहं होदिकुन्दकुन्दभारती पृ. ३२०।।।७०।।
उत्तमक्षमा, उत्तममार्दव, उत्तमआर्जव, उत्तमसत्य, उत्तमशौच, उत्तमसंयम, उत्तमतप, उत्तमत्याग, उत्तमआकिञ्चन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य ये मुनिधर्म के दश भेद हैं। ‘मूलाचार प्रदीप’ ग्रन्थ में संस्कृत टीका में ‘सत्य’ धर्म को पहले लिया है—
अथानंतर —अब आगे दश प्रकार के धर्मों का स्वरूप कहते हैं। ये दश प्रकार के धर्म मुनियों के लिये सुख के समुद्र हैं और मोक्षरूपी नगर में जाने के लिीए मार्ग का साक्षात् पाथेय हैं मार्ग व्यय है।।५७।।
उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आिंकचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य यह मुनियों के दश धर्म हैं और समस्त धर्मों का मूल हैं।।५८-५९।।
तत्त्वार्थवृत्ति-ग्रन्थ में ‘सत्य’ धर्म को पहले लिया है—उत्तमक्षमामार्दवार्जवसत्यशौचसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्मःतत्त्वार्थवृत्ति-अध्याय ९ सूत्र-६ पृ. ६१२।।।६।।
उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य ये दस धर्म हैं।।६।। पद्मनन्दिपंचविंशतिका ग्रन्थ के धर्मोपदेशामृत में दशलक्षण धर्म के कथन में मुद्रित प्रति पृ. ३५ से ४६ तक, श्लोक ८२ से १०६ तक में सत्य धर्म को पहले लिया है। सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में ‘शौचधर्म’ को पहले लिया है।उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागािंकचन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः५।।६।।
उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य यह दस प्रकार का धर्म है।।६।।
तत्त्वार्थवृत्ति-श्री भास्करनन्दि विरचित में ‘शौच’ धर्म को पहले लिया है—
उत्तम क्षमामार्दवार्जवशौच—सत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्मःसर्वार्थसिद्धि अध्याय-९ सूत्र-६ पृ. ३२३। ।।६।।
सूत्रार्थ — उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आिंकचन्य और ब्रह्मचर्य ये दस धर्म हैं। तत्त्वार्थराजर्वाितक ग्रंथ में ‘शौच धर्म’ पहले है।उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्म:२।।६।।
सूत्रार्थ —उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य और ब्रह्मचर्य ये दस धर्म हैं। तत्त्वार्थसूत्र के वाचन में या कहीं पर भी प्रवचन में सत्य या शौच धर्म को पहले लेने में हठवाद नहीं करना चाहिए, क्योंकि दोनों ही पक्ष आगम में मान्य हैं।