Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
दान :!
November 21, 2017
शब्दकोष
jambudweep
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष ]] ==
दान :
==
जह उसरम्मि खित्ते पइण्णवीयं ण िंक पि रुहेइ। फलवज्जियं वियाणह, अपत्तदिण्णं तहा दाणं।।
—वसुनन्दि श्रावकाचार : २४२
जिस प्रकार ऊसर खेत में बोया गया बीज कुछ भी नहीं उगाता है, उसी प्रकार अपात्र में दिया गया दान भी फलरहित—सा है।
साहूणं कप्पणिज्जं, जं न वि दिण्णं कहिं पि िंकचितहिं। धीरो जहुत्तकारी, सुसावया तं न भुंजंति।।
—उपदेशमाला : २३९
जिस घर में साधुओं को उनके अनुकूल किंचित् भी दान नहीं दिया जाता, उस घर में शास्त्रोक्त आचरण करने वाले धीर तथा त्यागी सद्गृहस्थ भोजन नहीं करते।
जो पुण लच्छिं संचदि ण य भुंजदि णेय देदि पत्तेसु। सो अप्पाणं वंचदि मणुयत्तं णिप्फलं तस्स।।
—कार्तिकेयानुप्रेक्षा : १३
जो मनुष्य लक्ष्मी का केवल संचय करता है, दान नहीं देता, वह अपनी आत्मा को ठगता है और उसका मनुष्य जन्म लेना वृथा है।
दिन्ति फलाइं जहिच्छं कप्पदुमा नेय िंकपि जंपंति। धूमलियजलहरा पाणियं पि दाऊण गज्जंति।।
—गाहारयण कोष : १३३
मन इच्छित भरपूर फल देकर भी कल्पवृक्ष कुछ भी नहीं बोलते और काले बादल सिर्पâ पानी देकर भी गर्जना करते रहते हैं।
आहारौषध—शास्त्रानुभयभेदात् यत् चर्तुिवधम् दानम्। तद् उच्यते दातव्यं र्नििदष्टम् उपासक—अध्ययने।।
—समणसुत्त : ३३१
आहार, औषधि, शास्त्र और अभय, ये दान के चार भेद हैं। उपासकाध्ययन के अनुसार ये चारों देने योग्य होते हैं।
दानं भोजनमात्रं, दीयते धन्यो भवति सागार:। पात्रापात्रविशेषसंदर्शने िंक विचारेण।।
—समणसुत्त : ३३२
Previous post
अरिहंत!
Next post
*अनशन :*!
error:
Content is protected !!