दिक्शुद्धि
Directional purity, an activity of Jaina saints for Svadhyay. धवला आदि सिद्धान्त ग्रंथों के सवाध्याय हेतु की जाने वाली एक विशेष क्रिया पिछली रात्रि में वैरात्रिक स्वाध्याय के पश्चात् चारों दिशाओं में 27-27 श्वासोच्छ्वासपूर्वक 9-9 बार णमोकार मंत्र पढकर पौर्वाणिहक (प्रातःकालीन ) स्वाध्याय के पश्चात् अपरान्हिक स्वाध्याय हेतु 21-21 उच्छ्वासों में 7-7 बार चारों दिशाओं में णमोंकार मंत्र पढ़ा जाता है। और अपराहिन्क स्वाध्याय के पश्चात् पूर्व रात्रिक स्वाध्याय हेतु 15-15 उच्छ्वासों में 5-5 बार चारों दिशाओं में णमोकार मंत्र पढ़ा जाता है। ये दिक् (दिशा) शुद्धि कहलाती है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]