कमण्डलु भारतीय संस्कृति का सारोपदेष्टा है। उसका आगमनमार्ग बड़ा और निर्गमनमार्ग छोटा है। अधिक ग्रहण करना और अल्प व्यय करना अर्थशास्त्र का ही नहीं, सम्पूर्ण लोकशास्त्र का विषय है। संयम का पाठ कमण्डलु से सीखना चाहिए।
कमण्डलु में भरे हुए जल की प्रत्येक बूँद के समुचित उपयोग हेतु एक पतली टोटी लगी होती है। जिसके द्वारा उतना ही जल निकाला जाता है, जितना आवश्यक होता है।
हाथ-पैर प्रक्षालन के लिए शुद्धि के लिए कमण्डलु की आवश्यकता होती है।
दिगम्बर सम्प्रदाय में मुनि, एलक, क्षुल्लक तथा आर्यिकाएँ कमण्डलु धारण करती हैं।
कमण्डलु अलग है और जल अलग है। भेदविज्ञान का अहर्निश प्रबोध कमण्डलु से प्राप्त होता है।