दिगम्बर मुनि के पास संयम उपकरण के रूप में पिच्छिका होती है। यह जिन मुद्रा एवं करुणा का प्रतीक है। पिच्छिका और कमण्डलु मुनि के स्वावलम्बन के दो हाथ हैं। इसके बिना अहिंसा महाव्रत, आदान निक्षेपण समिति तथा प्रतिष्ठापना समिति नहीं पल सकती। प्रतिलेखन शुद्धि के लिए पिच्छिका की नितान्त आवश्यकता है। आचार्य श्री कुन्कुन्द स्वामी (अपर नाम वट्टकेर स्वामी) कहते हैं- णिपिच्छे णत्थि णिव्वाणं (मूलाचार १०/२५)
दिगम्बर सम्प्रदाय में मुनि,आर्यिकाएं, ऐलक, क्षुल्लक -क्षुल्लिका पिच्छिका धारण करते हैं।
मयूर पंख वाली पिच्छिका के पाँच गुण- १. धूल ग्रहण न करना, २. कोमलता, ३. लघुता, ४. धूल पसीना ग्रहण नहीं करती, ५. सुकुमार (झुकने वाली) होती है। यहाँ तक देखा है कि इसके बालों को आँखों में डाल दें तो आँसू नहीं आते।
कार्तिक मास में मयूर स्वेच्छा से अपने पंख छोड़ता है। इसके लिए किसी भी प्रकार से मयूर को पीड़ा नहीं देनी पड़ती है। इसमें किसी भी तरह की हिंसा नहीं है। कार्तिक मास के पहले मयूर इसको बोझ मानता है। पंख हटने पर बड़ा हर्ष मानता है। जैसे गाय दूध दुहने के बाद हल्का महसूस करती है
श्रावक का कर्त्तव्य होता है कि स्वयं मयूर पंख की पिच्छिका तैयार करें तथा मुनियों की पिच्छिका पुरानी हो जाने पर उन्हें नवीन पिच्छिका उपकरण दान करें।
मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण भारत सरकार ने २६ जनवरी, १९६३ में इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया ।