णिच्चेल पाणिपत्तं उवइट्ठं परमजिणवरिंदेहिं।
एक्को वि मोक्ख मग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे।।१०।।
अर्थ– तीर्थंकर]] परमदेव ने नग्न मुद्रा के धारी निर्ग्रंथ मुनि को ही पाणिपात्र में आहार लेने का उपदेश दिया है। यह एक निर्ग्रंथ मुद्रा ही मोक्षमार्ग है, इसके सिवाय सब अमार्ग हैं-मोक्ष के मार्ग नहीं है।
लिंगं इच्छीणं हवदि भुंजइ पिडं सुएयकालम्मि।
अज्जिय वि एक्कवत्था वत्थावरणेण भुंजेई।।२२।।
अर्थ- एक लिंग स्त्रियों का होता है, इस लिंग-आर्यिका वेष को धारण करने वाली स्त्री दिन में एक ही बार करपात्र से आहार ग्रहण करती हैं । वह आर्यिका एक वस्त्र-साड़ी धारण करती हैं और वस्त्रावरण सहित ही आहार ग्रहण करती हैं ।