भिक्खं वक्वं हिययं सोधिय जो चरदि णिच्च सो साहू।
एसो सुट्ठिद साहू भणिओ जिणसासणो भयवं।।
जो साधु नित्य ही आहार, वचन और मन का शोधन करके चारित्र का पालन करते हैं, वे सर्वगुण सम्पन्न हैं। जिनशासन में उन्हें भगवान कहा है। भावार्थ -जो दिगम्बर मुनि आगम के अनुसार ४६ दोष और ३२ अन्तराय टाल कर निर्दोष आहार ग्रहण करते हैं, भाषा-समिति के अनुसार हित-मित और प्रिय पथ्य वचन बोलते हैं तथा दुध्र्यान को, क्रोधादि कषायों को दूर करके मन को सदा धर्मध्यान में लगाते हैं, वे ही साधु भिक्षा, वाक्य और मन की शुद्धि करने वाले हैं। वे मोक्षमार्ग में स्थित हैं, सर्वगुणों से समन्वित हैं। अत: ऐसे वे निग्र्रंथ साधु ही इस संसार में चलते-फिरते भगवान माने गये हैं। ऐसा जिनागम का कथन है।