मानव जीवन का सर्वोपरि ध्येय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति है।ये चारों तभी संभव है जब मानव शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ हो क्योंकि रोगी मनुष्य न तो धर्म का पालन ठीक से कर सकता है, न ही धनोपार्जन की सामथ्र्य उसमें रहती है। कामसुख भोगना भी शकाय या रोगी के बस की बात नहीं है। मोक्ष प्राप्ति तो दूर की बात है। दरअसल जीवन की सार्थकता और सुख प्राप्ति उत्तम स्वास्थ्य में ही निहित है। स्वस्थ रहने के लिए यह जरूरी है कि मनुष्य अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहे। अधिकांश बीमारियों का यही कारण है कि हम उनके प्रति लापरवाह बने रहते हैं और समय रहते नहीं चलते। यदि मनुष्य अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहे तो रोगों के आक्रमण से बचा रह सकता है। इसके लिये यह आवश्यक है कि हम प्रति प्रदत्त नियमों के अनुसार जीवन यापन करें। हम प्रकृति के नियमों की अवहेलना करते हैं, तभी हमारा स्वास्थ्य डगमगा जाता है। स्वस्थ रहकर दीर्घ जीवन जीने के लिये आयुर्वेद में कुछ नियम बताये गये हैं। यदि हम उनका पालन सही ढंग से करें तो अंत तक स्वस्थ और सुखी जीवन बिताया जा सकता है। प्रात: जागरण, शौच, व्यायाम , स्नान, भोजन और शयन आदि दैनिक कार्य यदि नियत समय पर ही किये जायें तो निश्चित रूप से हम स्वस्थ और प्रसन्नवित बने रह सकते हैं।
प्रात: जागरण
प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में बिस्तर त्याग देने से शरीर तेजमय, शक्तिशाली, सुन्दर और फुर्तीला रहता है। उस समय की प्रदूषण रहित शीतल मन्द शुद्ध पवन मनुष्य के मन मस्तिष्क और पेâफड़ों को नई शक्ति और स्वास्थ प्रदान करती है। विद्यार्थियों के लिये तो वह समय वरदान स्वरूप है। प्रात: उठकर बेड टी के बजाय अगर तांवे के बरतन में रखा हुआ जल पिया जाये तो स्वास्थ्य के लिये अति हितकर है। इससे बुद्धि तेज होती है और नेत्रा ज्योति बढ़ती है।
शौच
प्रात: की शारीरिक क्रियाओं में सबसे पहले शौच जाना अति आवश्यक है। सुबह जल पीकर शौच जाने से पेट साफ हो जाता है और चित्त प्रसन्न रहता है। शरीर स्फूर्तिमय बनता है। यदि कब्ज रहता है तो जुलाव लेने की आदत छोड़ दीजिये क्योंकि इसके कष्टदायक दुष्प्रभाव होते हैं। कब्ज से बचने का एक उपाय यह है कि अपने भोजन में पर्याप्त रेशे वाली चीजें लीजिये। रेशे अनाज, फलों और सब्जियों में होते हैं। इसके साथ ही पानी में भी पर्याप्त मात्रा में पीजिये।
व्यायाम
शरीर को स्वस्थ और चुस्त बनाये रखने के लिये व्यायाम करना भी बड़ा जरूरी है। योगाभ्यास भी उत्तम है। व्यायाम् के रूप में साइकिलिंग, जागिंग, तैराकी, टेनिस, घुड़सवारी, नृत्य और पैदल चलना आदि में से किसी एक को अपना सकते हैं। हल्का भारोत्तोलन व्यायाम भी नसों व अस्थिबन्धनों को मजबूत करता है। प्रात: भ्रमण भी अनेक बीमारियों के उपचार के लिए सबसे अच्छे व्यायामोें में से एक के रूप में सामने आ रहा है। हृदय रोग और मोटापा और तनाव की समस्याओं में टहलना एक अच्छा व्यायाम है।
स्नान
हमेशा शीतल जल से स्नान करना चाहिये। शीतकाल में हल्के गरम पानी से स्नान किया जा सकता है। स्नान करने से पहले शरीर पर तेल की मालिश करना हितकर है। शारीरिक स्वच्छता, मानसिक शुद्धि और आरोग्य के लिये स्नान का बड़ा महत्त्व है।
भोजन
अच्छे स्वास्थ्य के लिये यह बड़ा जरूरी है कि भोजन अपने नियत समय पर ही किया जाये। समय बेसमय जब चाहे खाते रहने से शरीर रोगग्रस्त हो जाता है। शुद्ध, सात्विक और सुपाच्य भोजन ही ग्रहण करना चाहिए । अधिक तेल, मसालेदार और अधिक भोजन पेट के दुश्मन हैं। तले भुने गरिष्ठ पदार्थ पेट पर अतिरिक्त भार डालते हैं। इनसे गैस, अपच और अम्लपित्त जैसी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। भोजन में किये गये आहार को अच्छी तरह चबा चबाकर निगलना चाहिये। भोजन के समय व्यर्थ की चिंता अथवा क्रोध नहीं करना चाहिये। इनसे स्वास्थ्य गिरता है। भोजन के नियमों के विरूद्ध आहार विषम आहार कहलाता है। विषम आहार लेना स्वास्थ्य के लिये नुकसानदेह है जैसे— शहद के साथ दूध या दही, खिचड़ी के साथ दूध, समान मात्रा में घी और शहद आदि विषम आहार हैं।
पर्याप्त नींद
पूरी और गहरी नींद सोना अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण है। अनिद्रा से व्यक्ति का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति की अपेक्षा मानसिक श्रम करने वाले व्यक्ति को नींद की आवश्यकता अधिक होती है। सामान्य व्यक्ति के लिये ७-८ घंटे नींद की आवश्यकता होती है। पर्याप्त नींद के बाद शरीर में चुस्ती फुर्ती और ताजगी से मन खिल उठता है जबकि पूरी नींद न आने के कारण शरीर थका—थका, सुस्त और आलस भरा रहता है। इसलिये भरपूर नींद लेना आवश्यक है। याद रखें हमारे शरीर रूपी मशीन के कलपूर्जे तब तक ठीक नहीं रहेंगे, जब तक उनका उचित प्रयोग न हो और उन्हें पर्याप्त आराम न मिले।