center]] छोटा-सा दिल हमारे शरीर का सबसे अहम अंग है। इसने काम करना बंद किया तो जिंदगी खत्म। दिल की बीमारियों की जांच और इलाज के कई नए तरीके सामने आए हैं। इनके जरिए हम कैसे अपने दिल को ज्यादा सेहतमंद रख सकते हैं, 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे स्पेशल पर एक्सपर्ट्स से बात करके आपको जानकारी दे रहे हैं प्रदीप सरदाना:
प्रो. एस. सी. मनचंदा सीनियर कार्डियॉलजिस्ट, सर गंगाराम अस्पताल डॉ. नरेश त्रेहन चेयरमैन, मेदांता हार्ट इंस्टिट्यूट डॉ. अशोक सेठ चेयरमैन, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट एंड रिसर्च सेंटर प्रो. बलराम ऐरण डीन और एचओडी, कार्डियो थॉरेसिक साइंसेज सेंटर, एम्स डॉ. अचल शंकर दवे सीनियर फिजिशन दिल की बीमारी से बचाव कैसे मुमकिन है और जिन लोगों को यह बीमारी हो चुकी है, उनके इलाज और जिंदगी को कैसे आरामदेह बनाया जा सकता है, इस बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 29 सितंबर को ‘वर्ल्ड हार्ट डे’ मनाया जाता है। ‘वर्ल्ड हार्ट डे’ की इस साल की थीम है ‘शेयर द पावर’ यानी आप पहले अपने दिल को ताकतवर बनाएं और फिर आपने यह कैसे किया, यह दूसरों के साथ साझा करें क्योंकि छोटे-छोटे बदलाव ही बड़ा बदलाव ला सकते हैं। अनुमान है कि देश में दिल के मरीजों की संख्या करीब 6 करोड़ है। हालांकि अच्छी खबर यह है कि बीते कुछ बरसों में लोग दिल की बीमारी को लेकर जागरूक हो रहे हैं और लाइफस्टाइल में बदलाव कर अपने दिल को मजबूत बनाने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। साथ ही, नई तकनीक की बदौलत जांच और इलाज अब पहले से बेहतर हो गए हैं। खानपान में भी पहले से चली आ रहीं मान्यताओं में काफी बदलाव हुआ है।
पहले माना जाता था कि फैट्स कम लेने चाहिए, लेकिन नई स्टडी बताती हैं कि कार्बोहाइड्रेटस ज्यादा नुकसानदेह हैं। ऐसे में हेल्दी फैट्स तो सीमित मात्रा में लेने चाहिए लेकिन ट्रांस-फैट्स और कार्बोहाइड्रेटस कम लेने चाहिए। यह देखा गया है कि जो लोग फैट कम लेते हैं, वे ज्यादा लंबी उम्र नहीं जी पाते। – अब सिर्फ खराब फैट्स (सैचुरेटिड और ट्रांस-फैट) लेने की मनाही है, जोकि दिल ही नहीं, पूरे शरीर की सेहत के लिए खतरनाक हैं लेकिन अच्छे फैट्स जरूर लेने चाहिए। – अच्छे फैट्स में सरसों का तेल सबसे बेहतर है लेकिन यह कच्ची घानी का ही होना चाहिए। साथ ही देसी घी का भी इस्तेमाल भी सीमित मात्रा (रोजाना एक-दो छोटे चम्मच) में लाभदायक है। लेकिन इससे ज्यादा देसी घी बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। आप इस घी को अगर सीधे सब्जी में या रोटी पर लगाकर खाएंगे तो बेहतर है। एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव आयल भी अच्छा है। कभी-कभार नॉन-रिफाइंड सनफ्लार ऑयल (सूरजमुखी का तेल) और कॉर्न ऑयल (मक्की का तेल) भी इस्तेमाल कर सकते हैं। एक बार में दो या तीन तेल खाएं (जैसे कि सरसों का तेल, देसी घी और ऑलिव ऑयल) क्योंकि कोई भी एक तेल सारे गुणों से भरपूर नहीं होता। ऐसे में दूसरा तेल भरपाई कर देता है। – खाने की किसी चीज को रिफाइंड करने से उसके कई अच्छे तत्व नष्ट हो जाते हैं और कई तरह की अशुद्धता भी आ जाती है इसलिए रिफाइंड चीजों को नहीं खाना चाहिए। मसलन, गेहूं का दलिया या आटा इस्तेमाल करें, लेकिन गेहूं से रिफाइंड किया हुआ मैदा न खाएं। ब्राउन चावल सीमित मात्रा में खाए जा सकते हैं लेकिन बरसों से प्रचलित रिफाइंड यानी सफेद चावल न खाएं। ऐसे ही सफेद चीनी की जगह ब्राउन शुगर या सफेद बूरा का इस्तेमाल किया जा सकता है। नॉन-रिफाइंड गुड़ तो सबसे बेहतर है। वैसे बाजार में चमकता रिफाइंड गुड़ भी उपलब्ध है लेकिन वह सेहत के लिए हानिकारक है। नॉन-रिफाइंड गुड़ कुछ कालापन लिए होता है, लेकिन वह सबसे बढ़िया होता है। इस गुड़ को डायबीटीज के मरीज भी कभी-कभार कम मात्रा में ले सकते हैं। वैसे मीठा सेहतमंद लोगों को भी कम ही खाना चाहिए। – प्रोसेस्ड और प्रिजर्व्ड यानी डिब्बा और पैकेटबंद संरक्षित चीजें भी सेहत और खासकर दिल के लिए बेहद हानिकारक हैं। ‘रेडी टु ईट’ या ‘सेमी कुक्ड फूड’ आइटम मसलन सब्जियां, बिरयानी, परांठे, मिठाइयां आदि के अलावा पैक्ड जूस, एनर्जी ड्रिंक्स, सॉफ्ट ड्रिंक्स आदि भी दिल के लिए नुकसानदेह हैं। जानें किसमें क्या सैचुरेटिड फैट्स: घी, बटर, चीज, नारियल तेल, रेड मीट आदि। ये सर्दियों में जम जाते हैं इसलिए माना जाता है कि ज्यादा मात्रा में खाएं तो ये दिल की आर्टरीज़ में भी जम जाते हैं। रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट: सफेद चीनी, सफेद चावल, सफेद मैदा आदि। तमाम मिठाइयों, फास्ट फूड, आइसक्रीम, बेकरी प्रॉडक्ट्स, नूडस्ल, बर्गर, पित्जा आदि इस कैटिगरी में आते हैं। ट्रांस फैट्स: वनस्पति घी और जिस भी ऑयल को बार-बार गर्म किया जाए, उसमें ट्रांस-फैट आ जाते हैं। चिप्स, नमकीन, बेकरी प्रोडक्ट्स, जंक फूड आदि के अलावा बाहर के खाने (रेस्तरां से लेकर स्ट्रीट फूड तक) में ट्रांस फैट काफी होते हैं।
दिल की बीमारी का सबसे बड़ा कारण हाई ब्लड प्रेशर, डायबीटीज और कॉलेस्ट्रोल है इसलिए इनको बढ़ाने वाली चीजें जैसे कि नमक और चीनी का इस्तेमाल कम-से-कम करें। फुल क्रीम दूध से परहेज करें क्योंकि यह शरीर में फैट बढ़ाता है। रेड मीट दिल के लिए तो खतरनाक है ही, कैंसर की भी वजह बन सकती है। ज्यादा कार्बोहाइड्रेट्स वाली चीजें जैसे कि आलू, अरबी और शकरकंदी आदि भी कम खाने चाहिए। – फास्ट फूड और जंक फूड के साथ मार्केट में मिलने वाली खाने की दूसरी चीजों से भी बचना चाहिए। इसका कारण यह है कि मार्केट में खाना बनाते वक्त कई जगहों पर सस्ते और घटिया घी-तेल और दूसरी चीजें इस्तेमाल होती हैं। सबसे खतरनाक यह है कि एक ही तेल में बार-बार तले जाने से खाने में ट्रांस-फैट्स बढ़ जाते हैं, जोकि सेहत के दुश्मन हैं। सबसे ज्यादा हानिकारक है तंबाकू। तंबाकू किसी रूप में (स्मोकिंग, गुटखा, पान आदि) न लें। तंबाकू दिल की बीमारी के अलावा अस्थमा और कैंसर जैसी बीमारियों की भी वजह बनता है। – तो फिर क्या खाएं, ज़ाहिर है यह सवाल मन में उठता ही है। जो भी चीजें घर पर बनाई जाएं और अच्छे तेल का इस्तेमाल हो, वे सब खाई जा सकती हैं। यहां तक घर में अच्छे तेल में बने समोसे और पकौड़े जैसी चीजें भी कभी-कभार कम मात्रा में खाई जा सकती हैं। – सेहत के लिए सबसे फायदेमंद हैं ताजे फल और सब्जियां। साथ ही ड्राई फ्रूट्स, नट्स और सीड्स जैसे बादाम, अखरोट, पिस्ता, मूंगफली, खरबूजा-तरबूज के बीज आदि भी सेहत के लिए अच्छे हैं। टोंड मिल्क और उससे बना दही, छाछ आदि सेहत के लिए अच्छे हैं। कभी-कभार थोड़ी मात्रा में बटर भी ले सकते हैं। साथ ही ग्रीन और ब्लैक टी भी पीनी चाहिए, जो कॉलेस्ट्रोल को कम करने में मदद करती हैं। अगर आप कामकाजी हैं तो अक्सर आप खाना स्किप कर देते होंगे। कभी सुबह का नाश्ता छूट जाता होगा तो कभी लंच। भूख लगती होगी तो एक दो बिस्कुट खा लेते होंगे पर क्या आपने कभी यह सोचा है कि ऐसा करना सेहत के लिए कितना खतरनाक हो सकता है। हमारे खानपान और लाइफस्टाइल का सीधा असर हमारे अंगों पर पड़ता है, मुख्य रूप से हमारे दिल पर। हमारा दिल हमारे शरीर का सबसे जरूरी हिस्सा है। ऐसे में इसका सेहतमंद रहना बहुत अहम है लेकिन अगर वक्त की कमी के चलते आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो घबराने की जरूरत नहीं। इन छोटी-छोटी आदतों को अपनाकर भी आप अपने दिल को सेहतमंद रख सकते हैं। अगर आप कुर्सी पर बैठकर काम करते हैं तो हर घंटे में पांच मिनट का ब्रेक लेना जरूरी है। अपने करीबी दोस्तों के साथ समय-समय पर घूमने जाएं लेकिन बिना किसा मोबाइल, लैपटॉप के। खुश होने के बड़ी-बड़ी बातों का इन्तजार मत कीजिए। छोटी-छोटी बातों पर भी मुस्कुराने की आदत डालिए। निगेटिव लोगों से जितनी दूरी बनाकर रह सकें, रहिए। ऐसे लोगों के करीब रहें, जो पॉजिटिव हों और खुशी बांटने वाले हों। अपने पसंदीदा व्यंजनों को हेल्दी तरीके से पकाने की कोशिश कीजिए। अपने पसंदीदा प्ले-लिस्ट पर ठुमके लगाना मत भूलिए। अपने आस-पड़ोस के बच्चों को इकट्ठा कीजिए और उनके साथ कोई पुराना खेल खेलें। आउटडोर गेम हो तो, ज्यादा बेहतर होगा। अपने आस-पड़ोस के बच्चों को इकट्ठा कीजिए और उनके साथ कोई पुराना खेल खेलें। आउटडोर गेम हो तो, ज्यादा बेहतर होगा।
देश में दिल के मरीजों की बड़ी तादाद की वजह यह है कि लोग ब्लड प्रेशर, डायबीटीज और कॉलेस्ट्रोल की रेग्युलर जांच नहीं कराते। अगर जांच कराते हैं और कुछ गड़बड़ी पाई जाती है तो उसके प्रति गंभीर नहीं होते और आगे की जांच नहीं कराते लेकिन अब कुछ जांच ऐसी आ गई हैं, जिनसे किसी बड़ी जांच प्रक्रिया से गुजरे बिना भी दिल की बीमारी का पता आसानी से लग सकता है। ऐसे दो ब्लड टेस्ट हैं: 1. ट्रॉप टी (Trop T): इसे ट्रोपोनिन (Troponin) टेस्ट भी कहा जाता है। यह टेस्ट मरीज के ब्लड में मौजूद ट्रोपोनिन नामक प्रोटीन की मात्रा जांचकर बता देता है कि मरीज को दिल का दौरा पड़ा है या नहीं। इसकी कीमत करीब 1400-1600 रुपये होती है और सरकारी अस्पतालों में फ्री होता है। 2. एचएससीआरपी (HSCRP) टेस्ट: इसका पूरा नाम है हाई सेंसटिविटी सी रिएक्टिव प्रोटीन। जिनकी फैमिली में दिल की बीमारी की हिस्ट्री रही है, यह जांच उनके लिए खासतौर पर फायदेमंद है। जांच में सीआरपी काउंट बता देते हैं कि उस शख्स में दिल की बीमारी के कितनी आशंका है। इसकी कीमत 700-800 रुपये है और बड़े सरकारी अस्पतालों में फ्री होता है। -सीटी कोरोनरी एंजियोग्राफी (CT Coronary Angiography) ने भी जांच काफी आसान की है। पहले एंजियोग्राफी काफी तकलीफदेह थी लेकिन अब सीटी कोरोनरी एंजियोग्राफी की जाती है जोकि काफी सटीक नतीजे दे रही है। जिनकी आर्टरीज़ में शुरुआती लेवल की रुकावट है, जो आगे चलकर दिल के दौरे का कारण बन सकती है, या जिन्हें डायबीटीज है या जिनके परिवार में दिल की बीमारी रही है, उनके लिए यह जांच काफी फायदेमंद है। -एमआरआई MRI से भी किसी के दिल की स्थिति का काफी हद तक पता चल जाता है जबकि इसके लिए पहले दिल की बायोप्सी करनी पड़ती थी।
आंकड़े बताते हैं कि देश में दिल के मरीज बेशक बढ़ रहे हैं लेकिन सर्जरी के मामले नहीं बढ़ रहे। इसी तरह पहले हर साल देश में 25 लाख लोग सालाना दिल की बीमारी की वजह से मौत के मुंह में जा रहे थे जिसके घट कर 20 लाख रह जाने की उम्मीद है। इसमें नई तकनीक और दवाओं का काफी अहम रोल है। – कई दवाओं ने भी दिल से जुड़ी बीमारियों के खतरे को कम किया है। ऐसी ही एक दवा है स्टेटिन। जिसमें अटोर्वास्टेटिन (Atorvastatin), रोजुवास्टेटिन (Rosuvastatin) की गोली अलग-अलग ब्रैंड नेम जैसे कि अटोरसेव (Atorsave), रोज़ावेल (Rozavel) आदि के नाम से मार्केट में उपलब्ध है। यह गोली यों तो करीब 10 साल पहले ही आ गई थी लेकिन इसके सटीक नतीजे अब पूरी तरह सामने आ गए हैं। इससे कॉलेस्ट्रोल कम होता है और यह दिल के दौरे के खतरे को थोड़ा कम कर देती है। लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉक्टर की सलाह के बिना किसी को भी यह दवा नहीं लेनी चाहिए। अगर कॉलेस्ट्रोल थोड़ा बढ़ा हुआ है, तब भी नहीं खानी चाहिए। अगर कॉलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा हो या ब्लॉकेज हो, तभी इसे लेना चाहिए। जो लोग बरसों से डायबीटीज से पीड़ित हैं या जिनके परिवार में दिल की बीमारी का इतिहास है, वे इसे ले सकते हैं। जिन्हें हार्ट अटैक हो चुका है, उनके लिए तो यह अनिवार्य है। – खून को पतला करने की भी एक अच्छी दवा हाल में आई है। हालांकि यह थोड़ी महंगी है। एक टैब्लेट करीब 70-72 रुपये की होती है। इस नई दवा के सॉल्ट को डैबिगट्रान (Dabigatran), रिव्राक्साबन (Rivaroxaban), अपिक्साबन (Apixaban) और एडोक्साबेन (Edoxaban) जैसे नामों से जाना जाता है। ये गोलियां मार्केट में प्रडक्सा (Pradaxa), जेरेल्टो (Xarelto), ऐलीकुइस (Eliquis), सवाय्सा (Savaysa) और लिक्सिअना (Lixiana) आदि ब्रैंड नेम से मिलती हैं। इस गोली का सबसे बड़ा फायदा यह है कि मरीज को बार-बार ब्लड टेस्ट नहीं कराना पड़ता, जबकि पहले खून पतला करने की दवा लेने वाले मरीज को बार-बार ब्लड टेस्ट कराना पड़ता था ताकि यह पता लग सके कि खून जरूरत से ज्यादा पतला तो नहीं हो गया। इस दवा के इस्तेमाल से हार्ट अटैक का खतरे भी कम हो जाएगा। – एंट्रेसटो (Entresto) नाम की टैब्लेट का भी विदेशों में चलन शुरू हो गया है। चेशर (ब्रिटेन) में लेटन हॉस्पिटल के डॉ. आशीष दवे इस गोली को मरीजों पर ट्रायल और टेस्ट कर रहे हैं। उनका कहना है कि अभी तक इसके जो भी ट्रायल हुए हैं, वे अच्छे रहे हैं। इसके सेवन के बाद मृत्यु दर में 21 फीसदी कमी आंकी गई है। डॉ. त्रेहन का कहना है कि यह गोली हार्ट अटैक से पहले या हार्ट अटैक के बाद दिल कमजोर होने की स्थिति में दी जा रही है। डायबीटीज, वायरल इन्फेक्शन या फिर ज्यादा शराब पीने की वजह से अगर दिल कमजोर हो जाता है, तब भी यह गोली फायदेमंद साबित हो रही है।
अब बिना सर्जरी के भी बड़ी संख्या में दिल के मरीजों का इलाज मुमकिन हो रहा है। इसकी वजह है बैलूनिंग, एंजियोप्लास्टी और डिवाइस क्लोजर तकनीक। बरसों पहले ओपन हार्ट-बायपास सर्जरी की जाती थी। करीब 30 साल पहले बैलूनिंग तकनीक आई, जिससे आर्टरीज को कुछ चौड़ा कर दिया जाता था लेकिन यह परमानेंट इलाज नहीं था। फिर कुछ बरस बाद स्टेंट आए जोकि दिल के मरीजों के लिए बहुत बड़ी राहत थी। अब सरकार ने इनके रेट काफी कम करके फिक्स कर दिए हैं, जो मरीजों के लिए राहत की बात है। बैलूनिंग, स्टेंट और डिवाइस क्लोजर लगाने के लिए अब सर्जरी या सर्जन की जरूरत नहीं होती। इस काम को कार्डियॉलजिस्ट ही कर लेते हैं। सर्जरी रोकने में डिवाइस क्लोजर तकनीक भी वरदान साबित हुई है। इसका सबसे बड़ा फायदा उन मरीजों को मिला है, जिनके दिल में छेद होता है। आमतौर पर यह दिक्कत जन्मजात होती है। दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल के निदेशक रहे और मशहूर डॉक्टर प्रो. एम. खलीलुल्लाह 1988 में यह तकनीक इंडिया लाए। डॉ. खलीलुल्लाह कहते हैं, ‘यह तकनीक इतनी कामयाब और लोकप्रिय हो गई है कि क्लोज्ड हार्ट सर्जरी (जिसमें दिल को काम करता रहा था लेकिन चेस्ट को खोलना पड़ता था) तो वह अब बंद ही हो गई है। यह डिवाइस एक बहुत छोटी-सी छतरी की तरह होती है जिसे जांघ की नसों के जरिए डॉक्टर मरीज के दिल के पास पहुंचा देते हैं। अंदर जाकर यह छतरी पैराशूट की तरह खुल जाती है और फिर इसे दिल के छेद पर कुछ ऐसे चिपका दिया जाता है, जैसे टायर पर पंचर लगा दिया जाता है।
अब छोटे-छोटे कट से ही दिल की सर्जरी हो जाती है। साथ ही, सर्जरी में डॉक्टर रोबॉट की मदद भी लेने लगे हैं। हाल में दिल के वॉल्व बदलने का काम भी बिना बड़े कट वाली सर्जरी के होने लगा है। इसे टीएवीआर (TAVR) यानी Transcatheter Aortic Valve Replacement कहा जाता है। इसके लिए 18 से 25 लाख रुपये तक का खर्च आ जाता है। उम्र या किसी और कारण से जिन मरीजों की सर्जरी मुमकिन नहीं है, उनके लिए यह तरीका बड़ी सौगात है। फिलहाल इस तकनीक से 70 साल या ज्यादा उम्र के लोगों का इलाज ही किया जा रहा है। उसका एक कारण यह है कि इसमें टिशू वॉल्व लगाए जाते हैं, जोकि 15 से 20 साल तक काम करते हैं। कम उम्र के लोगों में प्रॉपर सर्जरी से ही वॉल्व बदलने को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि उनमें मेटल वॉल्व लगाए जाते हैं, जो लंबे समय तक चलते हैं। फिर महंगा होने की वजह से भी हर कोई टीएवीआर तकनीक से इलाज नहीं कराता। डॉ. बलराम ऐरण बताते हैं, ‘हम एम्स में हर साल करीब 1500 वॉल्व बदलते हैं लेकिन हम इन्हें टीएवीआर तरीके से नहीं बदल सकते क्योंकि इसमें जितना खर्च आएगा, उतने खर्च में हम सर्जरी के जरिए 25 लोगों के वॉल्व बदल देंगे। हां, यह जरूर है कि जिन वॉल्व में ब्लड क्लॉट नहीं होते, उन्हें हम (बैलून) तकनीक से खोल रहे हैं और उसमें भी प्रॉपर सर्जरी नहीं होती। इसका खर्च करीब 40 हजार आता है, जबकि सर्जरी का सिर्फ 10 हजार। लेकिन रकम का इतना फर्क लोग सहन कर लेते हैं।’ माना जा रहा है कि 4-5 बरसों में टीएवीआर तकनीक ज्यादा विकसित और ज्यादा लोगों की पहुंच में आ जाएगी।
किसी के हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत तब होती है, जब किसी के दिल की पंपिंग यानी धड़कने की क्षमता काफी कम हो जाती है। कुछ मामलों में पेसमेकर लगाकर इस समस्या से निजात पाई जाती रही है तो कुछ में ट्रांसप्लांट किया जाता है। देश में पहला हार्ट ट्रांसप्लांट दिल्ली के एम्स में 1994 में हुआ था।तीन साल पहले तक देश में कुल 100 हार्ट ट्रांसप्लांट भी नहीं हुए थे लेकिन इन पिछले तीन बरसों में ही 300 से भी ज्यादा हार्ट ट्रांसप्लांट हो चुके हैं। वजह, यह है कि सरकार ने केंद्र में एक अलग संगठन नोटो (NOTO) यानी नैशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन का गठन कर दिया है। साथ ही राज्यों में सोटो (SOTO) और रोटो (ROTO) का भी गठन हो गया है। इससे अंगदान देने वालों को प्रोत्साहित करने के साथ उनके लिए नियम भी आसान हो गए हैं। लोगों में जागरूकता भी लाई जा रही है। साथ ही प्रशासन ऐसे इंतजाम करने लगा है कि किसी मृत शख्स के दिल को निकालने से लेकर उसे दूसरे शहर में ट्रांसप्लांट करने का काम कम-से-कम समय में किया जा सके क्योंकि दिल को निकालने से लेकर लगाने तक का काम अगर अधिकतम 6 घंटे में पूरा न हो तो वह दिल बेकार हो जाता है।
यह बात चौंकाती है कि दिल्ली के एम्स में पिछले कुछ वक्त में जो हार्ट ट्रांसप्लांट हुए हैं, उनमें से 5 दिल अकेले इंदौर से आए। पिछले करीब डेढ़ साल में इंदौर वालों ने दूसरे राज्यों में दिल भेजकर 14 लोगों को नया जीवन दिया है। यह सब मुमकिन हो पाया है ‘इंदौर सोसाइटी फॉर ऑर्गन डोनेशन’ के जरिए। संस्था के अध्यक्ष संजय दुबे आईएएस अधिकारी हैं और फिलहाल इंदौर के आयुक्त हैं जबकि संस्था के उपाध्यक्ष इंदौर के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस अजय कुमार शर्मा हैं। संजय बताते हैं कि उनकी पत्नी सरकारी डॉक्टर हैं। एक दिन उनके मन में विचार आया कि अगर लोग अंगदान की अहमियत को समझें तो बहुतों की जान बचाई जा सकेगी। इसी सोच से ‘इंदौर सोसाइटी फॉर ऑर्गन डोनेशन’ की नींव रखी गई। इस संस्था से कई बड़े सरकारी अधिकारी और इंदौर के बड़े डॉक्टर जुड़े हैं। ये लोग मिलकर लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करते हैं, फिर दिल को बाहर भेजते हुए ‘ग्रीन कोरिडोर’ तैयार कराते हैं ताकि ट्रांसप्लांट में एक मिनट की भी देरी न हो। बकौल संजय, ‘हम दिल दान देने वाले शख्स के परिवार के दो सदस्यों का अपनी संस्था की ओर से जिंदगी भर के लिए फ्री मेडिकल इंश्योरेंस भी कराते हैं। लोगों में यह भावना पैदा करनी होगी कि एक शख्स के अंगदान करने से 6 लोगों के परिवारों को जीवन मिल सकता है। तभी लोग हार्ट डोनेशन के लिए आगे आएंगे।
देश के इन सभी टॉप डॉक्टरों का मानना है कि दिल की बीमारी का सबसे बड़ा कारण तनाव है। तनाव से ही हाई ब्लड प्रेशर होता है और शुगर लेवल भी बढ़ता है। इसके लिए कम-से-कम 6 घंटे की भरपूर नींद लेने के साथ नियमित योग करें। दिलचस्प बात यह है कि हमारे पांचों पैनलिस्ट डॉक्टर तमाम व्यस्तताओं के बावजूद नियमित योग और सैर करते हैं। इनका कहना है कि अगर दिल को सेहतमंद चाहते हैं तो रोजाना एक घंटा सैर करें। इसके लिए सिर्फ एक जोड़ी जूतों की जरूरत होती है लेकिन इससे दिल की बीमारी का खतरा 25 फीसदी कम हो जाता है। नोट: हमने यहां कुछ दवाओं के नाम पाठकों की जानकारी बढ़ाने के लिए दिए हैं। कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह के बिना न लें।