गृह और परिग्रह तथा उनके ममत्व से जो रहित है, वाईस परीषह तथा कषायो को जिसने जीता है, पापारम्भ से जो रहित है ऐसी दीक्षा जिदेव ने कही है। जिसमें शत्रु-मित्र में प्रशंसा- निन्दा में लाभ-अलाभ में तथा तृण व कांचन में समभाव है ऐसी प्रवज्या कही है।