[[श्रेणी:मुनिदीक्षा_विधि]] ==
प्रणम्य शिरसा वीरं जिनेन्द्रममलव्रतम्। दीक्षा ऋक्षाणि वक्ष्यन्ते सतां शुभफलाप्तये।।१।।
भरण्युत्तरफाल्गुन्यौ मघा-चित्रा-विशाखिका:। पूर्वाभाद्रपदा भानि रेवती मुनिदीक्षणे।।२।।
रोहिणी चोत्तराषाढा उत्तराभाद्रपत्तथा। स्वाति: कृत्तिकया सार्धं वज्र्यते मुनिदीक्षणे।।३।।
अश्विनी-पूर्वाफाल्गुन्यौ हस्तस्वात्यनुराधिका:। मूलं तथोत्तराषाढा श्रवण: शतभिषक्तथा।।४।।
उत्तराभाद्रपच्चापि दशेति विशदाशया:। आर्यिकाणां व्रते योग्यान्युशन्ति शुभहेतव:।।५।।
भरण्यां कृत्तिकायां च पुष्ये श्लेषार्द्रयोस्तथा। पुनर्वसौ च नो दद्युरार्यिकाव्रतमुत्तमा:।।६।।
पूर्वभाद्रपदा मूलं धनिष्ठा च विशाखिका। श्रवणश्चैषु दीक्ष्यन्ते क्षुल्लका: शल्यवर्जिता:।।७।।
श्री वीर जिनेन्द्र भगवान को शिर झुकाकर नमस्कार करके एवं अमल-निर्दोष व्रतों को भी नमस्कार करके सज्जनों-साधुओं को शुभ फल की प्राप्ति के लिए दीक्षा के नक्षत्रों को कहूँगा।।१।।
भरणी, उत्तराफाल्गुनी, मघा, चित्रा, विशाखा, पूर्वाभाद्रपदा और रेवती ये नक्षत्र मुनिदीक्षा के लिए प्रशस्त-शुभ माने हैं।।२।। रोहिणी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, स्वाति और कृत्तिका ये नक्षत्र मुनिदीक्षा में वर्जित हैं।।३।। अश्विनी, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, मूल, उत्तराषाढ़ा, श्रवण और शतभिषज तथा उत्तराभाद्रपदा ये दश नक्षत्र आर्यिका दीक्षा के लिए योग्य-शुभहेतुक हैं।।४-५।। भरणी, कृत्तिका, पुष्य, आश्लेषा, आद्र्रा और पुनर्वसु इन नक्षत्रों में गुरुगण आर्यिकाव्रत नहीं देवें।।६।। पूर्वाभाद्रपदा, मूल, धनिष्ठा, विशाखा और श्रवण इन नक्षत्रों में शल्यवर्जित क्षुल्लक दीक्षा देनी चाहिए।।७।।
इस प्रकार दीक्षा नक्षत्रों का कथन पूर्ण हुआ ।