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दीक्षा लेकर बने शांतिसागर निजकर्म जलाने को!
June 13, 2020
भजन
jambudweep
दीक्षा लेकर बने शांतिसागर
तर्ज-तीरथ करने चली सती…..
दीक्षा लेकर बने शांतिसागर निजकर्म जलाने को।
वैसे होते हैं मुनिवर, यह बतला दिया जमाने को।।दीक्षा..।।टेक.।।
एक बार कोन्नूर गुफा में, शांतिसिंधु ध्यानस्थ हुए।
नागराज आकर मुनिवर के, पावन तन पर भ्रमण करे।।
मानो वे पाषाण बन गये, निज आतम निधि
पाने को निज आतम निधि पाने को……।।दीक्षा…।।१।।
दो ब्रह्मचारी एक बार, मुनिवर के सम्मुख पहुँच गये।
बोले कलियुग में नहिं ऋद्धि, अत: आप मुनिवर नहिं हैं।।
गुरु ने आम्रवृक्ष का उदाहरण, दिया उन्हें समझाने को,
दिया उन्हें समझाने को।।दीक्षा…।।२।।
वे ही आगे बने वीरसागर व चन्द्रसागर मुनिवर।
शांतिसिंधु जैसा गुरु पाकर, किया उन्होंने जन्म सफल।।
बने तभी आचार्य प्रथम वे, चउविध संघ चलाने को,
चउविध संघ चलाने को।।दीक्षा…।।३।।
संघ सहित करके विहार, गुरुवर कुंथलगिरि पहुँच गये।
वहाँ देशभूषण कुलभूषण, मुनि चरणों के दर्श किये।।
उनकी प्रतिमा बनवाई, उनका इतिहास बताने को,
उनका इतिहास बताने को।।दीक्षा…।।४।।
जिनशासन का भाग्य खिल गया, ऐसे तपसी गुरु पाकर।
सहे बहुत उपसर्ग परीषह, गुरुवर ने मुनि पद पाकर।।
बने ‘‘चन्दनामती’’ और भी, मुनि मुक्तीपद पाने को,
मुनी मुक्तिपद पाने को।।दीक्षा…।।५।।
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