यहाँ चैत्यालय में लाकर अभिषेक पूजा कराने की आज्ञा है। संघ परम्परा के अनुसार दीक्षा के पांडाल में भगवान विराजमान करना चाहिए। वहीं दीक्षार्थी को लाकर भगवान का अभिषेक कराकर देव, शास्त्र, गुरु की पूजा करावें या समयाभाव हो तो अघ्र्य चढ़ा देवें, पुन: वैराग्यभावना से ओतप्रोत दीक्षार्थी सभा में गुरु से प्रार्थना करते हुए चाहे तो पाँच-सात मिनट या जितना भी संभव हो माइक से प्रवचन करते हुए सभा में सभी से व परिवारजनों से क्षमायाचना कराके गुरु के निकट श्रीफल चढ़ाकर जैनेश्वरी दीक्षा की प्रार्थना करे। इससे पूर्व वहाँ मंच पर सौभाग्यवती महिलाएँ श्वेत धुले हुए चावलों से चौक बनाकर पीले चावलों से स्वस्तिक बनाकर ऊपर श्वेत वस्त्र बिछा देवें। गुरु की आज्ञा प्राप्त कर दीक्षार्थी उस चौक पर दाहिना पैर आगे बढ़ाकर बैठ जावे। दीक्षार्थी दीक्षा के चौक पर पूर्वदिशा में मुख करके बैठे और दीक्षादाता आचार्यदेव उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठे एवं आचार्यदेव अपने संघ से पूछकर दीक्षाविधि प्रारंभ करें। उसमें सर्वप्रथम केशलोंच क्रिया की विधि है।