उरूग्वे के ७७ वर्षीय राष्ट्रपति खोसे मुजिका राजधानी के भव्य राष्ट्रपति भवन में रहने के बजाए बाहर अपने खेत में बहुत साधारण से देहाती मकान में रहते हैं। घर के बाहर कपड़े सूखते मिल जाएंगे और झाड़ियां दिखेंगी। उनके खेत में फूलों की खेती होती है और वे खुद ट्रैक्टर चलाते देखे जा सकते हैं। आगंतुको को वे खुद रसोई में जाकर मेट नामक एक हर्बल पेय बनाकर तूंबे जैसे बरतन में पिलाते हैं । वे शाकाहारी हैं और कभी टाई नहीं पहनते हैं।उनके घर के रास्ते भी पक्के नहीं हैं। व्यक्तिगत संपत्ति के नाम पर उनके पास सिर्फ १८०० डालर (करीब एक लाख रूपये) की एक पुरानी कार है, जिसे वे खुद चलाते हैं। उनकी पत्नी भी सांसद है। इस राष्ट्रपति को १२००० डालर (करीब ६ लाख ६० हजार रू.) का मासिक वेतन मिलता है, जिसका केवल १० फीसदी वे अपने पास रखते हैं और ९० फीसदी वेतन गरीबों के हित में चलने वाले कार्यक्रमों में दान दे देते हैं। सुरक्षा के नाम पर खोसे मुजिका के घर के बाहर रास्ते पर सादे कपड़ों में दो पुलिस वाले बैठे रहते हैं। वे एक साधारण नागरिक की तरह घूमते रहते हैं। पिछले दिनों वे पत्नी के साथ समुद्र किनारे एक नगर में छुट्टी मनाने गए थे और रास्ते के किनारे एक साधारण से रेस्तरां में लंच ले रहे थे, तो एक नौजवान ने उन्हें पहचान लिया और उनकी तस्वीर फैसबुक पर जारी कर दी। हजारों लोगों ने उसे देखा और हैरान रह गए। ट्विटर पर उरूग्वे के एक नागरिक ने लिखा, ‘‘हम दुनिया के एकमात्र देश होंगे जहाँ का राष्ट्रपति अपनी प्रथम महिला के साथ अंगरक्षकों के बगैर कहीं भी लंच करने जाता है।’’
पिछले नवम्बर में दुनिया के सबसे गरीब राष्ट्रपति के रूप में उनकी काफी चर्चा रही। इस पर वे रोमन दार्शनिक सेनेका को उद्धत करते हैं— ‘‘ वह आदमी गरीब नहीं है जिसके पास धन कम है, बल्कि वह गरीब है जिसे ज्यादा और ज्यादा पाने की ललक रहती है।’’ वे कहते हैं कि यदि आपके पास बहुत सारी संपत्ति और चीजें हो तो उनको बनाए रखने के लिए आपको जिंदगी भर गुलाम की तरह काम करना पड़ता है। उरूग्वे ३३ लाख आबादी का लातीनी अमरीका का एक छोटा सा देश है। खोसे मुजिका २००९ में पांच साल के लिए इसके राष्ट्रपति चुने गए। साठ और सत्तर के दशक में वे दुपामारोस नामक एक वामपंथी सशस्त्र गुरिल्ला समूह के सदस्य थे जो क्यूबा की क्रांति से प्रेरित था, जिसे गन्ना मजदूरों और विद्यार्थियों ने शुरू किया था। खोसे मुजिका १४ साल जेल में रहे, जिनमें दस वर्ष से ज्यादा तो उन्हें अलग काल—कोठरी में रखा गया जहाँ केवल मे़ंढक और चूहे उनके साथी थे। बाद में १९८५ में लोकतांत्रिक सरकार बनने पर उन्हें छोड़ा गया। उनकी पत्नी भी एक पूर्व गुरिल्ला है। आज भारत में और बाकी दुनिया में जहाँ सत्तासीन नेता शान—शौकत और फिजूलखर्च में नए—नए प्रतिमान कायम कर रहे हैं, वहाँ उरूग्वे के इस राष्ट्रपति का किस्सा बिरला और प्रेरणादायक है। क्या आपको खोसे मुजिका में गांधी का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है ?