असंयत, देश संयत मनुष्य और तिर्यंच उत्कृष्टपने से अच्युत स्वर्ग पर्यंत जाते हैं। तिलोयपण्णत्ति में तिर्यंचों का गमन उत्कृष्ट से बारहवें स्वर्ग तक ही माना है।
द्रव्य से निर्ग्रंथ मुनि और भाव से असंयत, देश संयत या मिथ्यादृष्टि ऐसे साधु उपरिमग्रैवेयक तक जाते हैं। एवं भाव से सम्यग्दृष्टि महामुनि सवार्थसिद्धि पर्यंत जाते हैं।
भोग भूमिया सम्यग्दृष्टि मरकर सौधर्म ईशान स्वर्ग तक जाते हैं। भोगभूमिया मिथ्यादृष्टि भवनत्रिक में जन्म लेते हैं। पंचाग्नि आदि तपने वाले कुतापसी अधिक से अधिक भवनत्रिक तक जाते हैं। चरक, एकदंडी, त्रिदण्डी, परिव्राजक, संन्यासी आदि अधिक रूप से ब्रह्म स्वर्ग तक जाते हैं। कांजिका-हारभोजी, आजीवक आदि अच्युत स्वर्ग पर्यंत जाते हैं।