मंदिर के दरवाजे में प्रवेश करते ही बोलें-ॐ जय जय जय, नि:सही नि:सही नि:सही। नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु। भगवान के सामने खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर णमोकार मंत्र पढ़ें।
पुन: भगवान की तीन प्रदक्षिणा देवें। बँधी मुट्ठी से अँगूठा भीतर करके चावल के पुँज चढ़ावें।
भगवान के सामने अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु ऐसे पाँचों पद बोलते हुए क्रम से बीच में, ऊपर, दाहिनी तरफ, नीचे और बार्इं तरफ ऐसे पाँच पुँज चढ़ावें।
सरस्वती के सामने प्रथमं करणं चरणं द्रव्यं नम: ऐसे बोलकर क्रम से चार पुँज लाइन से चढ़ावें।
गुरू के सामने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र ऐसे बोलकर क्रम से तीन पुँज लाइन से चढ़ावें।
पुन: हाथ जोड़कर निम्न स्तोत्र बोलें-
हे भगवन्! नेत्रद्वय मेरे, सफल हुये हैं आज अहो।
तव चरणांबुज का दर्शन कर, जन्म सफल है आज अहो।।
हे त्रिभुवन के नाथ! आपके, दर्शन से मालूम होता।
यह संसार जलधि चुल्लू जल, सम हो गया अहो ऐसा।।१।।
अर्हत्सिद्धाचार्य औ, पाठक साधु महान्।
पंच परम गुरू को नमूँ, भवभव में सुखदान।।२।।
पुन: विधिवत् पृथ्वी तल पर मस्तक टेककर नमस्कार करें।
अर्थ – हे भगवन् ! आपके चरण कमलों का दर्श न करके आज मे रे दो नों नेत्र सफल हो गये हैं औ र मे रा जन्म भी सफल हो गया है। हे ती न लोक के नाथ! आपके दर्शन करने से ऐसा मालूम होता है कि जो मेरा संसार-समुद्र अपार था सो आज चुल्लू भर पानी के समान थो़डा रह गया है।अर्हंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु ये पं च परम गु रू भव-भव में सु ख दे ने वाले हैं। मैं इनको नमस्कार करता हू ।
गंधोदक लेने का मं त्र
निर्मल से निर्मल अति, अघ नाशक सुखसीर।
वंदूं जिन अभिषेक कृत, यह गंधोदक नीर।।