जिन देवों की आयु २ सागर है वे २००० वर्षों के बीत जाने पर दिव्य अमृतमय मानसिक आहार ग्रहण करते हैं अर्थात् २००० वर्ष बीतने पर उन्हें भोजन की इच्छा होते ही कण्ठ से अमृत झर जाता है और तृप्ति हो जाती हैं ये देव दो पक्ष में उच्छ्वास लेते हैं। जिनकी आयु एक सागर है वे १००० वर्ष में आहार एवं एक पक्ष में उच्छ््वास लेते हैं आगे सानत्कुमार युगल में ७ सागर की आयु वाले ७००० वर्ष में आहार एवं सात पक्ष में श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं।
सौधर्म इंद्र के सोम, यम लोकपालों तथा उनके सामानिक देवों की आयु २-१/२ पल्य है। उनकी देवांगनाओं की आयु १-१/२ पल्य प्रमाण है। अत: ये सोम आदि देव १२-१/२ दिन में आहार एवं १२-१/२ मुहूर्त में उच्छ्वास लेते हैं उनकी देवियाँ ६-१/२ दिन में आहार एवं ६-१/२ मुहूर्त में उच्छ्वास लेती हैं।
जो देव जितने सागर तक जीवित रहते हैं उतने ही हजार वर्षों में आहार ग्रहण करते हैं एवं पल्य प्रमाण रहने वाले देव ५ दिन में आहार ग्रहण करते हैं प्रतीन्द्र, सामानिक और त्रायिंस्त्रश देवों का आहार काल अपने-अपने इंद्रों के सदृश है।