गर्भ, जन्म आदि कल्याणकों में या क्रीड़ा के लिये यत्र तत्र जाने में देवों के उत्तर-शरीर-विक्रिया से निर्मित शरीर जाते हैं उनके मूल शरीर सुखपूर्वक जन्मस्थानों में स्थित रहते हैं। विक्रिया के शरीर की स्थिति अंतर्मुहूर्त मात्र है। ये देव अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्त में शरीर की नई-नई विक्रिया करते रहते हैं। इन्हें इसमें कष्ट का अनुभव नहीं होता है प्रत्युत आनंद आता है। इस विषय में विशेषता इतनी है कि सौधर्म-ईशान कल्प में उत्पन्न हुई देवियों के मूल शरीर अपने-अपने स्वर्ग देवों के पास में जाते हैं अर्थात् आगे के स्वर्गों की सभी देवियाँ सौधर्म ईशान कल्प में ही जन्म लेती हैं पुन: इनके देव आकर इन देवियों को अपने-अपने स्वर्गों में ले जाते हैं तब ये देवियाँ मूल शरीर में ही जाती हैं।