सौधर्म-ईशान की उत्कृष्ट आयु २ सागर, सानत्कुमार-माहेन्द्र में ७, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर में १०, लांतव-कापिष्ठ में १४, शुक्र-महाशुक्र में १६, शतार-सहस्रार में १८, आनत-प्राणत में २०, आरण-अच्युत में २२, नव ग्रैवेयक में क्रम से प्रथम ग्रैवेयक में २३, द्वितीय में २४, तृतीय में २५, चतुर्थ में २६, पंचम में २७, छठे में २८, सातवें में २९, आठवें में ३०, नवमें में ३१ सागर की है। नव अनुदिश में बत्तीस एवं पंच अनुत्तरों में उत्कृष्ट आयु ३३ सागर प्रमाण है।
पूर्व-पूर्व के देवों की उत्कृष्ट आयु कुछ अधिक होकर आगे-आगे के देवों की जघन्यु आयु हो जाती है। जैसे सौधर्म कल्प के देवों की जघन्य आयु एक पल्य है एवं उत्कृष्ट आयु २ सागर है। आगे सानत्कुमार कल्प में जघन्य आयु कुछ अधिक २ सागर और उत्कृष्ट आयु ७ सागर है। ऐसे ही नव ग्रैवेयक, अनुदिश तक समझना। विजय आदि चार अनुत्तरों में जघन्य आयु ३२ सागर और उत्कृष्ट आयु ३३ सागर है। सर्वार्थसिद्धि में जघन्य आयु नहीं है। यह उत्कृष्ट आयु इंद्र, प्रतीन्द्र सामानिक, त्रायिंस्त्रश इन चार की ही होती है अन्य देवों की मध्यम व जघन्य आयु होती है।
सौधर्म इंद्र के ऋतु पटल में उत्कृष्ट आयु-छ्यासठ लाख, छ्यासठ हजार छह सौ, छ्यासठ करोड़, छ्यासठ लाख, छ्यासठ हजार, छह सौ और-२/३ पल्य-अर्थात् ६६६६६६६६६६६६६६-२/३ पल्य प्रमाण है।