ईशान कल्प तक के देवों का जन्म एकेन्द्रिय जीवों तक में हो सकता है। सहस्रार कल्प तक के देवों का मरकर मध्य लोक में जन्म संज्ञी तिर्यंच या मनुष्य में होता है। आनत आदि से ऊपर के देव कर्म भूमि मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं अन्यत्र नहीं। ये देव असैनी, अपर्याप्त, संमूर्च्छन, भोगभूमिज नहीं होते हैं प्रत्युत सैनी पर्याप्त, गर्भज, कर्म भूमिज ही होते हैं।
अनुदिश अनुत्तर विमानों से च्युत होकर बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण पद को प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
मनुष्यगति, तिर्यंच गति या भवनत्रिक से आये हुये जीव त्रेसठ शलाका पुरुषों के पद को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण ये ६३ महापुरुष शलाकापुरुष कहलाते हैं।