इंद्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक विमानों के ऊपर, समचतुष्कोण व लंबे विविध प्रकार के प्रासाद स्थित हैं। ये सब प्रासाद सुवर्णमय, स्फटिक मणिमय, मरकत, माणिक्य, इंद्रनील मणियों से निर्मित, उत्तम तोरणों से सुंदर द्वारों वाले, सात आठ नौ दश इत्यादि विचित्र भूमियों से भूषित, उत्तम रत्नों से विभूषित, अनेक यन्त्रों से रमणीय रत्न दीपक, कालागुरु आदि धूपों की गंध से व्याप्त, आसनशाला, नाट्यशाला, क्रीड़नशाला आदिकों से शोभायमान, सिंहासन, गजासन, मकरासन, मयूरासन आदि से परिपूर्ण विचित्र मणिमय शय्यायों से कमनीय, नित्य, विमल स्वरूप वाले कांतिमान अनादि निधन हैं।