प्रथम दो स्वर्गों के देव घर्मा नामक पहली पृथ्वी तक विक्रिया करते हैं। सानत्कुमार युगल के देव दूसरी पृथ्वी तक, ब्रह्मादि चार स्वर्ग के देव तीसरी पृथ्वी तक, शुक्र आदि चार स्वर्गों के देव चार पृथ्वी तक, आनतादि चार स्वर्गों के देव पाँचवीं पृथ्वी तक, ग्रैवेयकवासी छठी पृथ्वी तक एवं अनुदिश अनुत्तर में रहने वाले देव सातवीं पृथ्वी तक विक्रिया करते हैं। ये सोलह स्वर्ग तक के देव ही विक्रिया से गमनागमन करते हैंं अन्य अहमिन्द्र आदि अपने-अपने ग्रैवेयक आदि में ही रहते हैं। विक्रिया से अधिक से अधिक तीसरी पृथ्वी तक जाकर संबोधन कर सकते हैं। उससे नीचे नहीं जाते हैं।
इन देवों के अवधिदर्शन-अवधिज्ञान के विषय का भी यही प्रमाण है अर्थात् सौधर्म युगल के देव पहली पृथ्वी तक देखते जानते हैं इत्यादि। अनुत्तर विमानवासी देव मूर्तिक कर्मों के अनन्तवें भाग को कर्म सहित जीवों को तथा समस्त लोक नाली को भी देखते हैं। यह अधोदिशा में अवधिज्ञान का विषय हुआ है। अब ऊर्ध्व दिशा में अवधि को बताते हैं सौधर्म आदि देव अपने-अपने स्वर्ग के विमानों के ध्वज दण्ड पर्यन्त अवधि ज्ञान से देखते हैं उसके ऊपर नहीं देख सकते। काल की अपेक्षा सौधर्म युगल में देवों का अवधिज्ञान असंख्यात करोड़ वर्ष तक जानता है आगे-आगे अधिक होता जाता है।