इन देवों में से कोई देव जातिस्मरण से, कोई उपदेश श्रवण से, कोई जिनमहिमा दर्शन से, कोई देवर्द्धि दर्शन से सम्यक्त्वरत्न को प्राप्त कर लेते हैं। सोलह स्वर्ग तक ये चार कारण हैं। आगे नौ ग्रैवेयकों में देवर्द्धिदर्शन निमित्त नहीं है क्योंकि वहाँ के सभी देव अहमिन्द्र समान ऋद्धि वाले हैं। नव अनुदिश, पंचअनुत्तर में सम्यग्दृष्टि ही उत्पन्न होते हैं।