सो देवो जो अत्थं धम्मं कामं सुदेइ णाणं च।
सो देइ जस्स अत्थि दु अत्थो धम्मो य पव्वज्जा।।
‘जो देवे सो देव’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो अर्थ-निधि, रत्न आदि धन को देता है, धर्म-चारित्र लक्षण धर्म को, दया लक्षण धर्म को, वस्तु स्वरूप लक्षण धर्म को, आत्मा की उपलब्धि लक्षण धर्म को और उत्तम क्षमादि दशभेद लक्षण धर्म को देता है। काम-अर्ध-मंडलीक, मंडलीक, महामंडलीक, बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती और धरणेन्द्र के भोगरूप काम को देता है तथा केवल ज्योति-स्वरूप ज्ञान को देता है वह देव है। क्योंकि जिसके पास जो है वह वही देता है और जिनेन्द्रदेव के पास अर्थ है, धर्म है एवं प्रव्रज्या है इसीलिए वह अर्थ, धर्म और प्रव्रज्या-सर्व सौख्यमय दीक्षा को देते हैं।