रानी कनकोदरी ने पट्टरानी पद के अभिमान से अपनी सौत के ऊपर क्रोध करके उसके चैत्यालय से जिन प्रतिमा को मँगाकर बाहर डलवा दिया, पुन: संयमश्री आर्यिका के समझाने से वापस प्रतिमा को चैत्यालय में विराजमान करके बहुत प्रकार से पूजा की और प्रायश्चित किया।
वही रानी अगले भव में अंजना हो गई। वहाँ उस पाप का उदय आ जाने से बाईस वर्ष तक उसे (अंजना को) पति के वियोग का दु:ख सहना पड़ा।
प्रिय बालक-बालिकाओं तुम्हें जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा का मन-वचन-काय से कभी अपमान नहीं करना चाहिये।