एक मेंढक भगवान की भक्ति में गद्गद होकर कमल पंखुड़ी को मुख में दबाकर दर्शन के लिये चल पड़ा। मार्ग में राजा श्रेणिक के हाथी के पैर के नीचे दब गया और शुभ भावों से मरकर स्वर्ग में देव हो गया।
वहाँ से तत्क्षण ही भगवान के समवसरण में दर्शन करने आ गया। राजा श्रेणिक ने उस देव के मुकुट में मेंढक का चिन्ह देखकर श्री गौतम स्वामी से उसका परिचय पूछा। वहाँ सभी लोग देव-दर्शन की भावना के फल को सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुए।
देखो बालकों! भगवान के दर्शन की भावना से भी कितना पुण्य बन्ध होता है। कभी भी खाली हाथ से भगवान और गुरू का दर्शन नहीं करना चाहिए। चावल, लौंग, सुपारी, फल आदि चढ़ाकर ही दर्शन करना चाहिये।