सूरत के श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन डांडिया का मंदिर, चींटा बाजार, गोपीपुरा में लगभग २ फीट ऊँची सफेद पाषाण की अपने आप में एक मात्र आर्यिका प्रतिमा विराजमान है। आर्यिका के दाहिनी और आसीन प्रतिमा के नीचे क्षुल्लिका रत्नसिरि और बाई ओर आसीन प्रतिमा के नीचे क्षुल्लिका रत्नमती अंकित है। इस प्रतिमा पर संवत् १५४४ की एक स्पष्ट प्रशस्ति अंकित है। जिससे इसका नाम और प्रतिष्ठा कर्ता का नाम आदि ज्ञात होता है। प्रतिमा की प्रशस्ति इस प्रकार है—संवत् १५४४ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे।। श्री मूलसंघे।। सरस्वती गच्छे। बलात्कार गणे। भट्टारक श्री विद्यानंदि देवा तत्पट्टे भट्टारक श्री मल्लिभूषण। श्रीस्तंभस्तीर्थे।। हुंबडज्ञातेय।। श्रेष्ठि चांपा भार्या रुपिणि तत् पुत्री आर्यिका श्री विद्यानंदि दीक्षिता र्आियका कल्याणसिरि। तत् चेल्ली अग्रोतका ज्ञातो साहदेवा भार्या नारिंगदे।। पुत्रीजिनमतिनस्सही कारापितं प्रणमिति।।’’ ‘‘ क्षुल्लिका रत्नसिरि।। क्षुल्लिका जिनमति।।’’ २२ नवम्बर को जैन पत्रकारों को २२ सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल इस एकमात्र आर्यिका प्रतिमा का निरीक्षण करने गोपीपुरा सूरत पहुँचा। पत्रकारों ने श्री र्हािदकजी के शुद्ध वस्त्र पहन कर सहयोग करने के कारण ने प्रतिमा का चारों ओर से निरीक्षण किया व उस पर अंकित प्रशस्ति का वाचन कर नोट्स व छायाचित्र लिये।
डॉ. महेन्द्रकुमार जैन मनुज, इन्दौर सन्मतिवाणी २५ दिसम्बर २०१४