—दोहा—
तीर्थंकर बाईस के, गणधरदेव महान्।
पुष्पांजलि से पूजते, बने भव्य गुणवान्।।१।।
अथ द्वितीयवलये मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
(२२ तीर्थंकर के गणधर देवों के अर्घ्य)
—गीता छंद—
श्री अजितनाथ जिनेन्द्र के, नब्बे गणाधिप मान्य हैं।
‘केशरीसेन’ प्रधान इनमें, सर्व ऋद्धि निधान हैं।।
द्वादश गणों के नाथ द्वादश, अंग के कर्ता तुम्हीं।
मैं पूजहूँ नित भक्ति से, गुरुभक्ति भवदधि तारहीं।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथस्य केशरिसेनप्रमुखनवतिगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
संभव जिनेश्वर के सु इक सौ, पाँच गणधर ख्यात हैं।
गुरु ‘चारुदत्त’ प्रधान इनमें, सर्व ऋद्धि सनाथ हैं।।द्वादश.।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथस्य चारुदत्तप्रमुखपंचाधिकशतगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जिन अभीनंदन के गणाधिप, एक सौ त्रय ख्यात हैं।
गुरु ‘वङ्काचमर’ प्रधान इसमें, सर्व ऋद्धि सनाथ हैं।।द्वादश.।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथस्य वङ्काचमरप्रमुखत्रयाधिकशतगणधर-चरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री सुमति जिनके एक सौ, सोलह गणाधिप मान्य हैं।
‘श्रीवङ्का’ गणधर मुख्य इनमें, सर्वऋद्धी खान हैं।।
द्वादश गणों के नाथ द्वादश अंग के कर्ता तुम्हीं।
मैं पूजहूँ नित भक्ति से गुरुभक्ति भवदधि तारहीं।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथतीर्थंकरस्य वङ्काप्रमुखषोडशोत्तरएकशतगणधर-चरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीपद्मप्रभ के एक सौ, ग्यारह गणाधिप ख्यात हैं।
‘श्रीचमर’ गणधर मुख्य उनमें, सर्वरिद्धि सनाथ हैं।।द्वादश.।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभतीर्थंकरस्य चमरप्रमुखएकादशोत्तरएकशतगणधर-चरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जिनवर सुपारस के गणीश्वर, ख्यात पंचानवे हैं।
‘बलदत्त’ गणधर हैं प्रमुख, सब ऋद्धियों से भरे हैं।।द्वादश.।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकरस्य बलदत्तप्रमुखपंचनवतिगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री चन्द्रप्रभ के गणपती, तेरानवे गणपूज्य हैं।
‘वैदर्भ’ गणधर प्रमुख उनमें, सर्व ऋद्धी सूर्य हैं।।द्वादश.।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीचंद्रप्रभतीर्थंकरस्य वैदर्भप्रमुखत्रिनवतिगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री पुष्पदंत जिनेश के गणधर अठासी मान्य हैं।
‘श्रीनाग’ मुनि गणधर प्रमुख सब ऋद्धियों की खान हैं।।द्वादश.।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंततीर्थंकरस्य नागमुनिप्रमुखअष्टाशीतिगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शीतल जिनेश्वर के सत्यासी, गणधरा जग वंद्य हैं।
‘श्री कुंथु’ गणधर प्रमुख इनमें, सर्वरिद्धी कंद हैं।।द्वादश.।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीशीतलतीर्थंकरस्य कुंथुप्रमुखसप्ताशीतिगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रेयांस जिनके पास सत्तत्तर गणाधिप श्रेष्ठ हैं।
‘श्रीधर्मगुरु’ गणधर प्रमुख, सब ऋद्धि गुण में ज्येष्ठ हैं।।
द्वादश गणों के नाथ द्वादश, अंग के कर्ता तुम्हीं।
मैं पूजहूँ नित भक्ति से, गुरुभक्ति भवदधि तारहीं।।१०।।
ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसतीर्थंकरस्य धर्मप्रमुखसप्ततिगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र के, छ्यासठ गणाधिप गण धरें।
‘मंदर’ मुनी गणधर प्रमुख ये सर्व रिद्धि गुण भरें।।द्वादश.।।११।।
ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यतीर्थंकरस्य मंदरप्रमुखषट्षष्टिगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
—नरेन्द्र छंद—
विमलनाथ के गणधर पचपन, सब ऋद्धि से पावन।
‘जयमुनि’ प्रमुख उन्हों में गणधर, भव सागर से तारन।।
ये भव्यों के रोग शोक दुख, दारिद कष्ट निवारें।
नव निधि ऋद्धी यश संपत्ती, देकर भव से तारें।।१२।।
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथतीर्थंकरस्य जयमुनिप्रमुखपंचपंचाशत्गणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
श्री अनंत जिनवर के गणधर, हैं पचास गुण आकर।
‘श्री अरिष्ट’ गणधर प्रमुख्य हैं, ऋद्धि सिद्धि रत्नाकर।।
ये भव्यों के रोग शोक दुख, दारिद कष्ट निवारें।
नव निधि ऋद्धी यश संपत्ती, देकर भव से तारें।।१३।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथतीर्थंकरस्य अरिष्टप्रमुखपंचाशत्गणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
धर्मनाथ के गणधर सब ऋद्धी से पूर्ण तितालिस।
‘श्री अरिष्टसेन’ उनमें गुरु, ज्ञानज्योति से भासित।।ये.।।१४।।
ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथतीर्थंकरस्य अरिष्टसेनप्रमुखत्रिचत्वािंरशत्गणधर-चरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतिनाथ के छत्तिस गणधर, चौंसठ ऋद्धि समन्वित।
‘चक्रायुध’ गणधर उनमें गुरु, सर्व गुणों से मंडित।।
ये भव्यों के रोग शोक दुख, दारिद कष्ट निवारें।
नव निधि ऋद्धी यश संपत्ती, देकर भव से तारें।।१५।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथतीर्थंकरस्य चक्रायुधप्रमुखषट्त्रिंशत्गणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कुंथुनाथ के पैंतिस गणधर, शिवपथ विघ्न विनाशें।
प्रमुख ‘स्वयंभू’ गणधर उनमें, भविमन कुमुद विकासें।।ये.।।१६।।
ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकरस्य स्वयंभूप्रमुखपंचिंत्रशद्गणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अर जिनवर के तीस गणाधिप, सर्वऋद्धि के धारी।
‘कुंभ’ प्रमुख हैं गणधर सबमें, परमानंद सुखकारी।।ये.।।१७।।
ॐ ह्रीं श्रीअरनाथतीर्थंकरस्य कुंभप्रमुखिंत्रशद्गणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मल्लिनाथ के अट्ठाइस गण, नामक गुणमणि धारें।
‘श्री विशाख’ गणधर गुरु उनमें, भक्त विघन परिहारें।।ये.।।१८।।
ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथतीर्थंकरस्य विशाखप्रमुखअष्टाविंशतिगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मुनिसुव्रत के अठरह गणधर, व्रत गुण शील समन्वित।
‘मल्लि’ प्रमुख हैं गणधर उनमें, सब श्रुत ज्ञान समन्वित।।ये.।।१९।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रततीर्थंकरस्य मल्लिप्रमुखअष्टादशगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
नमि जिनवर के सत्रह गणधर, यम नियमों के सागर।
‘सुप्रभ’ प्रमुख गणाधिप उनमें, करते ज्ञान उजागर।।ये.।।२०।।
ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथतीर्थंकरस्य सुप्रभप्रमुखसप्तदशगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्व्ााहा।
नेमिनाथ के ग्यारह गणधर, ऋद्धि सिद्धि गुण धारें।
‘श्री वरदत्त’ प्रमुख गणधर हैं, गुणमणि माला धारें।।
ये भव्यों के रोग शोक दुख, दारिद कष्ट निवारें।
नव निधि ऋद्धी यश संपत्ती, देकर भव से तारें।।२१।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथतीर्थंकरस्य वरदत्तप्रमुखएकादशगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पार्श्वनाथ के दश गणधर गुरु, चौंसठ ऋद्धि धरें हैं।
‘प्रमुख स्वयंभू’ गणधर उनमें, स्वात्मपियूष भरे हैं।।ये.।।२२।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकरस्य स्वयंभूप्रमुखदशगणधरचरणेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
—पूर्णार्घ्य—
बाइस तीर्थंकर प्रभो, उनके गधधर देव।
पूर्ण अर्घ्य से पूजहूँ, करूँ चरण की सेव।।१।।
ॐ ह्रीं अजितनाथादि—पार्श्वनाथपर्यंततीर्थंकरगणधरदेवेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शान्तिधारा। दिव्य पुष्पांजलि: