ललाट देश में भृगुकच्छ नाम का नगर है। वहाँ पर लोकपाल राजा राज्य करता था। वहीं पर धनपाल नामक वैश्य की पत्नी का नाम धनश्री था। उसके एक गुणपाल और एक सुन्दरी पुत्री ऐसे दो संतान थीं। धनश्री ने कुंडल नाम के एक वैश्य पुत्र को, पुत्र के सदृश पालन-पोषण कर बड़ा किया था। पति धनपाल के मर जाने के बाद धनश्री उस कुंडल में आसक्त हो गई। ‘गुणपाल पुत्र ने मेरा दुराचार जान लिया है’, ऐसा समझकर उसने रात्रि में कुंडल से कहा कि प्रात: गुणपाल गाय चराने जाये तब उसे तुम मार डालना। यह बात सुन्दरी पुत्री ने सुन ली। उसने पिछली रात्रि में अपने भाई को सब हाल बता दिया। गुणपाल प्रात: गायों को लेकर वन में गया तब उसने एक लकड़ी को अपना वस्त्र उढ़ा दिया और आप झाड़ के नीचे छिप गया। जब कुंडल ने आकर उस लकड़ी पर वार किया कि गुणपाल ने पीछे से आकर उसे पकड़ कर उसके हाथ से तलवान छीन ली और उस कुंडल को मार डाला।
घर आने पर माता के द्वारा ‘कुंडल कहां है ?’ ऐसा पूछा जाने पर तलवार दिखायी कि ‘इसे पता है।’ माता ने कुपित होकर पुत्र के हाथ से शस्त्र छीन कर उसे मार डाला, पुत्री सुन्दरी ऐसा दृश्य देख चिल्लाई, तब कोतवाल ने आकर धनश्री को बांध लिया और राजा के समक्ष ले गये। राजा ने उसके कान, नांक आदि कटवा कर उसे गधे पर चढ़ाकर शहर से बाहर निकाल दिया। धनश्री इस दुर्दशा को प्राप्त कर हिंसा के पाप से क्रूर परिणामों से मरकर दुर्गति में चली गई।