-ब्र. कु. सारिका जैन (संघस्थ)
तर्ज-झुमका गिरा रे……………
आरति करो रे,
धरणेन्द्र देव की सब मिल करके, आरति करो रे।
पारसनाथ प्रभू के ये ही, परम भक्त माने जाते।
पद्मावति माता के पति के, रूप में भी जाने जाते।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
सब जन-जन के आराध्यदेव की, आरति करो रे।।१।।
कमठासुर ने उपसर्ग किया जब, पारसनाथ प्रभू पर।
धरणेन्द्र देव उपसर्ग मिटाने, पहुँचे वहाँ उसी क्षण।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
उपसर्ग निवारक धरणीपति की, आरति करो रे।।२।।
संसारी प्राणी धन-सुत की, इच्छा लेकर आते हैं।
आरति करके धरणीपति की, वे सन्तुष्टी पाते हैं।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
इच्छित फलदाता यक्षदेव की, आरति करो रे।।३।।
सम्यग्दृष्टी देव हमें तुम, सम्यक्बुद्धि प्रदान करो।
जैनधर्म में अडिग रहें हम, अन्त समय दुर्ध्यान न हो।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
यही ‘‘सारिका’’ भाव संजोकर, आरति करो रे।।४।।