रचयित्री-श्रीमती मालती जैन, धर्मालंकार
(वसंत कुंज), दिल्ली
श्री पार्श्वनाथ के प्रमुख यक्ष, धरणेन्द्र देव कहलाते हैं।
अपनी भार्या पद्मावति संग, वे जग में पूजे जाते हैं।।
धरणेन्द्र व पद्मावति माता, हमको भी शक्ति प्रदान करें।
हम इनका आह्वानन करके, जिनशासन का सम्मान करें।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथस्य शासन देव-धरणेन्द्रयक्ष! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पाञ्जलि:।
ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथस्य शासन देव-धरणेन्द्रयक्ष! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:।
ॐ ह्रीं तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथस्य शासन देव-धरणेन्द्रयक्ष! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथशासनदेवि पद्मावती मात:! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पाञ्जलि:।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथशासनदेवि पद्मावती मात:! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथशासनदेवि पद्मावती मात:! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्।
अष्टक (दोहा)
स्वर्ण कलश में नीर ले, पूजूँ शासन यक्ष।
पद्मावति धरणेन्द्र जी, दें भौतिक सुख सत्त्व।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवधरणेन्द्रयक्ष! इदं जलं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवि पद्मावति मात:! इदं जलं गृहाण गृहाण स्वाहा।
केशर चन्दन मिश्रकर, पूजूँ शासन यक्ष।
पद्मावति धरणेन्द्र जी, दें भौतिक सुख सत्त्व।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवधरणेन्द्रयक्षपद्मावतीयक्षी! इदं चंदनं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवि पद्मावति मात:! इदं चंदनं गृहाण गृहाण स्वाहा।
तंदुल धवल अखण्ड ले, पूजूँ शासन यक्ष।
पद्मावति धरणेन्द्र जी, दें भौतिक सुख सत्त्व।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवधरणेन्द्रयक्षपद्मावतीयक्षी! इदं अक्षतं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवि पद्मावति मात:! इदं अक्षतं गृहाण गृहाण स्वाहा।
विविध सुगंधित पुष्प ले, पूजूँ शासन यक्ष।
पद्मावति धरणेन्द्र जी, दें भौतिक सुख सत्त्व।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवधरणेन्द्रयक्षपद्मावतीयक्षी! इदं पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवि पद्मावति मात:! इदं पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा।
नाना विध पकवान्न ले, पूजूँ शासन यक्ष।
पद्मावति धरणेन्द्र जी, दें भौतिक सुख सत्त्व।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवधरणेन्द्रयक्षपद्मावतीयक्षी! इदं नैवेद्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवि पद्मावति मात:! इदं नैवेद्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
घृत दीपक का थाल ले, पूजूँ शासन यक्ष।
पद्मावति धरणेन्द्र जी, दें भौतिक सुख सत्त्व।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवधरणेन्द्रयक्षपद्मावतीयक्षी! इदं दीपं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवि पद्मावति मात:! इदं दीपं गृहाण गृहाण स्वाहा।
अगर तगर की धूप ले, पूजूँ शासन यक्ष।
पद्मावति धरणेन्द्र जी, दें भौतिक सुख सत्त्व।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवधरणेन्द्रयक्षपद्मावतीयक्षी! इदं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवि पद्मावति मात:! इदं धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा।
नींबू आम्र अनार ले, पूजूँ शासन यक्ष।
पद्मावति धरणेन्द्र जी, दें भौतिक सुख सत्त्व।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवधरणेन्द्रयक्षपद्मावतीयक्षी! इदं फलं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवि पद्मावति मात:! इदं फलं गृहाण गृहाण स्वाहा।
अष्टद्रव्य का थाल ले, पूजूँ शासन यक्ष।
पद्मावति धरणेन्द्र जी, दें भौतिक सुख सत्त्व।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवधरणेन्द्रयक्षपद्मावतीयक्षी! इदं अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेवि पद्मावति मात:! इदं अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
-शंभु छंद-
हे पार्श्वनाथ के परम भक्त, धरणेन्द्र देव महिमाशाली।
हे देवी पद्मावति माता, तुम तो सब जग से हो न्यारी।।
हम भौतिक सुख की इच्छा लेकर, तुम्हें मनाने आए हैं।
धरणेन्द्र व पद्मावति की हम, जयमाला गाने आये हैं।।१।।
यूँ तो चौबीसों जिनवर के, चौबिस हैं शासन देव कहे।
शासन देवी भी चौबिस हैं, पर पार्श्वनाथ के विशेष कहे।।
इनका कुछ दिव्य कथानक, जिनशासन ग्रंथों में वर्णित है।
प्रभु पार्श्वनाथ के जीवन से, इनका संबंध सुसज्जित है।।२।।
वाराणसि में इक बार पार्श्व प्रभु, नगर भ्रमण को निकल पड़े।
उद्यान में इक तापस को देखा, पंचाग्नी तप को करते।।
उन राजकुंवर श्री पार्श्वनाथ ने, अवधिज्ञान से जान लिया।
तपसी के लक्कड़ में जलते हुए नागयुगल पहचान लिया।।३।।
तापस को प्रभु ने बतलाया, तो क्रोधाग्नि में भड़क उठा।
लेकर कुठार लक्कड़ फाड़ा, तो सबका ही दिल दहल उठा।।
उस नागयुगल की अंतिम सांसें, पार्श्वनाथ पहचान गये।
फिर महामंत्र का संबोधन, सुनते ही उनके प्राण गये।।४।।
वे नागनागिनी मर करके, धरणेन्द्र व पद्मावती हुए।
श्री पार्श्वनाथ के यक्ष-यक्षिणी, बनकर जगत् प्रसिद्ध हुए।।
जब पार्श्वनाथ जी के ऊपर, कमठाचर ने उपसर्ग किया।
दोनों ने आ उपसर्ग दूर कर, पूरण निज कर्तव्य किया।।५।।
धरणेन्द्र व पद्मावति की महिमा, आर्ष ग्रंथ में गाई है।
इनके द्वारा की गई प्रभू की, भक्ति बहुत बतलाई है।।
अहिच्छत्र तीर्थ इसलिए धरा पर, अतिशय पूजा जाता है।
प्रभु पार्श्वनाथ के साथ वहाँ, इनको भी पूजा जाता है।।६।।
धरणेन्द्र व पद्मावति की हम, जयमाल गूँथ कर लाये हैं।
‘‘मालती’’ पुष्प कर में लेकर, हम उन्हें मनाने आए हैं।।
भौतिक इच्छाएँ पूरी कर, प्रभु भक्ति की शक्ती देना।
सब संकट विघ्न निवारण कर, सम्यक्त्व की दृढ़ युक्ती देना।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीपार्श्वनाथस्य शासनदेव धरणेन्द्रयक्ष-पद्मावतीयक्षी इदं जयमाला अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वाहा।
-सोरठा-
पद्मावति धरणेन्द्र, का सम्मान करो सभी।
सुख-शांति अरु क्षेम, मिलते हैं भव सुख सभी।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।