१) धवलादि सिद्धान्त ग्रंथों की एकमात्र प्राचीन प्रति दक्षिण कर्नाटक देश में मूडबिद्री नगर के गुरुवसदि नामक जैन मंदिर में वहाँ के भट्टारक चारुकीर्तिजी महाराज तथा जैन पंचों के अधिकार में है। तीनों ग्रंथों की प्रतियाँ ताडपत्र पर कानडी लिपी में हैं। धवला के ताडपत्रों की लंबाई लगभग २ फुट ३ इंच और कुल पत्रसंख्या ५९२ है। यह प्रति कब की लिखी हुई हैै, इसकी ठीक जानकारी प्राप्त नहीं होती किन्तु लिपि प्राचीन कानडी में है कि जो पाँच-छह शतक पुरानी है, ऐसा अनुमान किया जाता है। कहा जाता है कि ये सिद्धान्त ग्रंथ पहले जैनबिद्री अर्थात् श्रवणबेळगोळ नगर के एक मंदिरजी में विराजमान थे। वहाँ से किसी समय ये ग्रंथ मूडबिद्री पहुँचे।
२) इस धवला की प्रति की कानडी प्रतिलिपि पं. देवराज सेठी शान्तप्पा उपाध्याय और ब्रह्मय्य इंद्र द्वारा सन् १८९६ और १९१६ के बीच की गयी थी। यह लगभग १४ इंच लंबे और ६ इंच चौड़े काश्मीरी कागज के २८०० पत्रों पर लिखी गई है। यह भी मूडबिद्री के गुरुवसदि मंदिर में सुरक्षित हैं।
३) धवला के ताडपत्रों की नागरी प्रतिलिपि पं. गजपती उपाध्याय द्वारा सन् १८९६ और १९१६ के बीच में की गई थी। यह प्रति १५ इंच लम्बे और १० इंच चौड़े काश्मीरी कागज के १३२३ पत्रों पर है। यह भी मूडबिद्री गुरुवसदि मंदिर में है।
४) मूडबिद्री ताडपत्रों पर सन् १८९६ और १९१६ के बीच पं. गजपति उपाध्याय ने उनकी विदुषी पत्नी लक्ष्मीबाई की सहायता से जो प्रतिलिपि गुप्त रीति से की थी, वह आधुनिक कानडी लिपि में कागज पर है। यह प्रति अब सहारनपुर में लाला प्रद्युम्न कुमार जी रईस के अधिकार में है।
५) पूर्वोक्त नं. ४ की प्रति की नागरी प्रतिलिपि सहारनपुर में पं. विजयचंद्रय्या और पं.सीतारामशास्त्री के द्वारा सन् १९१६ और १९२४ के बीच कराई गई थी। यह प्रति १२ इंच लंबे और ८ इंच चौड़े कागज के १६५० पत्रों में है। पूर्वोक्त नं.५ की नागरी प्रतिलिपि करते समय एक प्रति पं. सीतारामशास्त्री ने अपने पास रखी थी।
उस पर से पं. सीतारामशास्त्री जी ने अनेक प्रतियाँ की हैं, जो कारंजा, आरा, सागर, सोलापुर आदि स्थानों में विराजमान हैं। आगे भी इस पर से नागरी लिपि में प्रतिलिपियाँ होती गयीं, लेकिन इन सब प्रतियों का मूल ताडपत्र से मिलान नहीं हुआ, उन्होंने मिलान नहीं किया इसलिए ताडपत्र के फोटो संस्था ने फोटोग्राफर भेजकर मंगवाए थे।
सोलापुर में सेठ रावजी सखाराम दोशी की प्रतिलिपि लेकर मूल ताडपत्र की प्रति से मिलान करने के लिए संस्था ने पं. लोकनाथ शास्त्री को मूडबिद्री भेजा था किन्तु उन्होंने ताडपत्रों से मिलान नहीं किया। इस कारण ताडपत्रों के फोटो संस्था ने फोटोग्राफर झारापकर को भेजकर मंगवाए, जो संस्था के दफ्तर में विद्यमान हैं।