साम्प्रतं धातकीखण्डपुष्करार्धयोरेकप्रकारत्वादग्रे वक्ष्यमाणक्षेत्रविभागहेतून् तयोरुभयपार्श्व-स्थितमिष्वाकारपर्वतानाह—
चउरिसुगारा हेमा चउकूड सहस्सवास णिसहुदया।
सगदीववासदीहा इगिइगिवसदी हु दक्खिणुत्तरदो१।।९२५।।
चतुरिष्वाकारा हेमाः चतुःकूटाः सहस्रव्यासा निषधोदयाः।
स्वकद्वीपव्यासदीर्घा एवैकवसतयः हि दक्षिणोत्तरतः।।९२५।। चउ।
धातकीखण्डपुष्करार्धयोर्मिलित्वा हेममयाश्चतुः कूटाः सहस्रव्यासाः
निषधोदया ४०० वस्कीयद्वीपव्यासदैध्र्याः एवैक़कवसतयश्चत्वार
इष्वाकारपर्वतास्तयोद्र्वीपयोर्दक्षिणोत्तरतस्तिष्ठन्ति।।९२५।।
धातकीखण्ड और पुष्करार्ध में क्षेत्र व पर्वतादि एक प्रकार के हैं। इनमें क्षेत्रों का विभाग करने वाले दोनों पाश्र्व भागों में स्थित इष्वाकार पर्वतों को कहते हैं—
गाथार्थ—दोनों द्वीपों के दक्षिणोत्तर दिशा में चार इष्वाकार पर्वत हैं जो स्वर्णमय और चार-चार कूटों से संयुक्त हैं। जिनका एक हजार योजन व्यास, निषध कुलाचल सदृश उदय और अपने-अपने द्वीपों के व्यास प्रमाण लम्बाई है तथा जो दक्षिण और उत्तर दिशा में एक-एक स्थित हैं एवं दक्षिणोत्तर लम्बे हैं।।९२५।।
विशेषार्थ—धातकीखण्ड और पुष्करार्ध द्वीपों की दक्षिणोत्तर दिशा में स्वर्णमय चार इष्वाकार पर्वत हैं। ये चारों पर्वत चार-चार कूटों से संयुक्त हैं, उनकी पूर्व पश्चिम चौड़ाई १००० योजन प्रमाण है। निषध कुलाचल सदृश ४०० योजन उँचे हैं तथा अपने-अपने द्वीपों के व्यास सदृश चार और आठ लाख योजन प्रमाण लम्बे हैं। ये दक्षिण और उत्तर दिशा में एक-एक स्थित हैं तथा दक्षिणोत्तर लम्बे हैं।