धातकीखण्डद्वीप व पुष्करार्धद्वीप में पर्वतों का विस्तार
दूसरा द्वीप नामसे धातकीखण्ड कहा जाता है। यहाँ मेरु (सुदर्शन) के पूर्व और पश्चिम में दो मेरु कहे गये हैं।।१।। यहाँ पर मेरु के उत्तर और दक्षिण में दो इष्वाकार पर्वत स्थित हैं। ये एक हजार योजन विस्तृत और द्वीप के विस्तार के बराबर (४ लाख योजन) आयत हैं।।२।। ये दोनों इष्वाकार पर्वत अवगाढ़ और ऊँचाई में निषध पर्वत के समान माने गये हैं। यहाँ पर सब पर्वत अपने-अपने अवगाढ़ और ऊँचाई में जम्बूद्वीपस्थ पर्वतों के समान हैं।।३।। धातकीखण्डद्वीप में क्षेत्र के अभिमुख (सामने) क्षेत्र और पर्वतों के अभिमुख पर्वत स्थित हैं। किन्तु चार (दो धातकीखण्ड और दो पुष्करार्ध द्वीप के) इष्वाकार पर्वत भरत और ऐरावत क्षेत्रों के अन्तर में स्थित हैं।।४।। हिमवान् आदिक बारह कुलपर्वतो का विस्तार पूर्व (जम्बूद्वीपस्थ हिमवान् आदि) से दूना माना जाता है। उसी प्रकार पुष्करार्ध नामक द्वीप में भी इन पर्वतों का विस्तार धातकीखण्ड की अपेक्षा दूना है।।५।। धातकीखण्ड में स्थित पर्वतों का विस्तार संक्षेप में अंक क्रम से दो, चार, आठ, आठ, सात और एक (१,७८,८४२) अर्थात् एक लाख अठत्तर हजार आठ सौ ब्यालीस योजन माना जाता है।।६।। अढ़ाई द्वीप में मेरु पर्वत को छोड़कर शेष जो पर्वत, वृक्ष, वक्षार और वेदिकाएँ स्थित हैं, उनका अवगाढ़ अपनी ऊँचाई के चतुर्थ भाग (१/४) प्रमाण है।।१३।। कुण्डों का विस्तार अपने अवगाह से छह गुणा (जैसे-१०²६·६०, २०²६·१२०, ४०²६·२४०) तथा द्रह और नदियों का विस्तार अपने अवगाह से पचास गुणा है।।१४।। चैत्यवृक्ष की ऊँचाई अपने अवगाह से डेढ़ सौ गुणी होती है। अढ़ाई द्वीपों में स्थित दस ही महावृक्ष जंबूवृक्ष के समान कहे गये हैं।।१५।। तालाब, कुण्ड, महानदियाँ तथा पद्मह्रद भी ये अवगाह की अपेक्षा पूर्व अर्थात् जम्बूद्वीपस्थ तालाब आदि के समान हैं। परन्तु विस्तार में वे जम्बूद्वीप के तालाब आदि से दूने-दूने हैं।।१६।।