धातकीखण्ड का व्यास ४ लाख योजन का है। इसमें १२ सूर्य एवं १२ चन्द्रमा हैं। ५१० योजन प्रमाण वाले यहाँ पर ६ गमन क्षेत्र हैं। एक-एक गमन क्षेत्रों में पूर्ववत् २-२ सूर्य-चन्द्र परिभ्रमण करते हैं।
जम्बूद्वीप के समान ही इन एक-एक गमन क्षेत्रों में सूर्य की १८४-१८४ गलियाँ एवं चन्द्र की १५-१५ गलियाँ हैं। गमना-गमन आदि क्रम सब यहीं के समान हैं।
लवण समुद्र की वेदी से (तट से) ३३३३२ योजन जाकर प्रथम सूर्य की प्रथम परिधि है। सूर्य बिम्ब का प्रमाण योजन छोड़कर आगे—६६६६५ योजन जाकर दूसरे सूर्य की प्रथम परिधि है। यहाँ पर सूर्य बिम्ब का प्रमाण योजन छोड़कर पुन: आगे ६६६६५ योजन पर तृतीय सूर्य की प्रथम परिधि है। इस क्रम से छठे सूर्य के बिम्ब के बाद ३३३३२ योजन पर धातकीखण्ड की अन्तिम तट वेदी है। यथा—
३३३३२ ± ± ६६६६५ ± ± ६६६६५ ± ± ६६६६५ ± ± ६६६६५ ± ± ६६६६५ ± ± ३३३३२ · ४००००० का धातकीखण्ड द्वीप है। यहाँ की भी गलियों की परिधियाँ बहुत ही बड़ी-बड़ी होती गई हैं। अत: यहाँ पर सूर्य की गति बहुत ही तीव्र हो गई है। यहाँ के ३ वलय के ६ सूर्य-चन्द्र सुमेरू की ही प्रदक्षिणा देते हुये भ्रमण करते हैं। बाकी के ३ वलय के सूर्य-चन्द्र धातकीखण्ड सम्बन्धी दो मेरू सहित सुमेरू की अर्थात् तीनों मेरूओं की प्रदक्षिणा करते हुये भ्रमण करते हैं।