अब्भंतरम्मि बाहिं अंकमुहा ते खुरुप्पसंठाणा।।२७९३।।
वज्जिय जंबूसामलिणामाइं विजयसरगिरिप्पहुदिं।
जंबूदीवसमाणं णामाणिं एत्थ वत्तव्वा।।२७९४।।
धातकीखण्ड व पुष्करार्ध के मेरु-कुलाचल आदि की संख्या
इन दोनों इष्वाकार पर्वतों के बीच में अर्धचन्द्र के समान (चक्ररंध्र के समान) आकार वाले दो उत्तम क्षेत्र और उनमें (दोनों विदेहों में) एक-एक मेरु पर्वत है।।२७८५।। धातकीखण्डद्वीप में जितने कुंड, जितने विजय, जितने सरोवर, जितने श्रेष्ठ पर्वत और जितनी नदियाँ हैं, उतने ही वे सब पुष्कराद्र्धद्वीप में भी दोनों इष्वाकार पर्वतों के अन्तराल भागों में स्थित हैं।।२७८६-२७८७।। तीनों द्वीपों में प्रणिधिगत विजयों के सदृश विजय, विजयाद्र्धों के सदृश विजयाद्र्ध, मेरुपर्वतों के सदृश मेरुपर्वत, कुलगिरियों के सदृश कुलगिरि, नदियों के सदृश नदियाँ तथा नाभिगिरियों के सदृश नाभिपर्वत है। इनमें से मेरु को छोड़कर शेष सबकी उँचाई समान है।।२७८८-२७८९।। सर्वप्रथम कहे हुए विजयों को छोड़ इनका विस्तार यहाँ जम्बूद्वीप में बतलाये हुए विस्तार से चौगुणा जानना चाहिये।।२७९०।। मेरुपर्वत को छोड़कर शेष कुलाचल आदिकों का विस्तार व उँचाई तीनों द्वीपों में समान है ऐसा कितने ही आचार्य निरूपण करते हैं।।२७९१।। पुष्कराद्र्धद्वीप में चार विजयाद्र्ध व बारह कुलपर्वत मानुषोत्तरशैल और कालोदकसमुद्र को छूकर स्थित हैं।।२७९२।। पुष्कराद्र्धद्वीप में स्थित वे कुलपर्वतादिक तथा दीर्घविजयाद्र्ध अभ्यन्तर व बाह्य भाग में क्रम से अंकमुख और क्षुरप्रके सदृश आकार वाले हैं।।२७९३।। यहाँ जम्बू और शाल्मली वृक्षों के नामों को छोड़कर शेष क्षेत्र, तालाब और पर्वतादिक के नाम जम्बूद्वीप के समान ही कहने चाहिये।।२७९४।।