धादइपुक्खरदीवा धाइदपुक्खरतरूहिं संजुत्ता।
तेसि च वण्णणा पुण जंबूदुमवण्णणं व हवे।।९३४।।
धातकीपुष्करद्वीपौ धातकीपुष्करतरुभ्यां संयुक्तौ।
तयोः च वर्णना पुनः जम्बूद्रुमवर्णना इव भवेत्।९३४।।
धावइ। धातकीखण्डपुष्करद्वीपौ धातकीपुष्करतरुभ्यां संयुक्तौ, तयोर्वृक्षयोर्वर्णना पुनर्जम्बूद्रुमवर्णानावद्भवेत्।।९३४।।
(जम्बूद्वीपपण्णत्ती ग्रंथ से२)
दोण्हं मेरूण तहा दोण्हं इसुगारपव्वदाणं तु।
धादगिदुमाण दोण्हं दोण्हं वरसामलिदुमाणं।।२९।।
गाथार्थ—धातकीखण्ड और पुष्करद्वीप क्रमशः धातकी और पुष्कर वृक्षों से संयुक्त हैं। इन दोनों वृक्षों का वर्णन जम्बूद्वीपस्थ जम्बूवृक्ष के वर्णन सदृश ही होता है।।९३४।।
(जम्बूद्वीपपण्णत्ती ग्रंथ से)
धातकी खण्ड में स्थित दो मेरु, दो इष्वाकार पर्वत, दो धातकी वृक्ष, दो शाल्मलि वृक्ष हैं।।२९।।
(तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ से१)
उत्तरदेवकुरूसुं खेत्तेसुं तत्थ धादईरुक्खा।
चेट्ठंति य गुणणामो तेण पुढं धादईसंडो।।२६००।।
धादइतरूण ताणं परिवारदुमा भवंति एदेस्सिं।
दीवम्मि पंचलक्खा सट्ठिसहस्साणि चउसयासीदी।।२६०१।।
।५६०४८०।।
पियदंसणो पभासो अहिवइदेवा वंसति तेसु दुवे।
सम्मत्तरयणजुत्ता वरभूसणभूसिदायारा।।२६०२।।
आदरअणादरणं परिवारादो भवंति एदाणं।
दुगुणा परिवारसुरा पुव्वोदिदवण्णणेिंह जुदा।।२६०३।।
(लोकविभाग ग्रंथ से१)
गिरयोऽर्धतृतीयस्था द्रुमवक्षारवेदिका:।
अवगाढा विना मेरुं स्वोच्चयस्य चतुर्थकम्।।१३।।
(तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ से)
धातकीखण्डद्वीप के भीतर उत्तरकुरु और देवकुरु क्षेत्रों में धातकीवृक्ष स्थित हैं, इसी कारण इस द्वीप का ‘धातकीखण्ड’ यह सार्थक नाम है।।२६००।।
इस द्वीप में उन धातकी वृक्षों के परिवार वृक्ष पांच लाख साठ हजार चार सौ अस्सी हैं।।२६०१।। ५,६०,४८०।
उन वृक्षों पर सम्यक्त्वरूपी रत्न से संयुक्त और उत्तम भूषणों से भूषित आकृति को धारण करने वाले प्रियदर्शन और प्रभास नामक दो अधिपति देव निवास करते हैं।।२६०२।।
इन दोनों देवों के परिवार देव आदर और अनादर देवों के परिवारदेवों की अपेक्षा दुगुणे हैं जो पूर्वोक्त वर्णन से संयुक्त हैं।।२६०३।।
(लोकविभाग ग्रंथ से)
अढ़ाई द्वीप में मेरु पर्वत को छोड़कर शेष जो पर्वत, वृक्ष , वक्षार और वेदिकायें स्थित हैं उनका अवगाढ अपनी ऊंचाई के चतुर्थ भाग १/४ प्रमाण है।।१३।।
विस्तृतानि हि कुण्डानि स्वावगाहं तु षड्गुणम्।
हृदनद्योऽवगाहाच्च पञ्चाशद्गुणविस्तृता:।।१४।।
।६०।१२०।२४०।।
उद्गतं स्वावगाहं तु चैत्यं सार्धशताहतम्।
जम्ब्वातुल्या: समाख्याता दशाप्यत्र महाद्रुमा:।।१५।।
सरकुण्डमहानद्यस्तथा पद्मह्रदा अपि।
अवगाहै: समा: पूर्वैर्व्यासैर्द्विर्द्विगुणा: परे।।१६।।
(तत्त्वार्थवार्तिक ग्रंथ से१)
जम्बूद्वीपे यत्र जम्बूवृक्षः तत्र धातकीषण्डे धातकीवृक्षः। परिवाराश्च पूर्वोक्त-वर्णनाः। तन्निवासी द्वीपाधिपतिस्तत एव द्वीपस्य धातकीषण्ड इति नाम वेदितव्यम्।१
कुण्डों का विस्तार अपने अवगाह से छह गुणा (जैसे १०²६·६०, २०²६·१२०, ४०²६·२४०) तथा द्रह और नदियों का विस्तार अपने अवगाह से पचास गुणा है।।१४।।
चैत्यवृक्ष की ऊँचाई अपने अवगाह से डेढ़ सौ गुणी होती है। अढ़ाई द्वीपों में स्थित दस ही महावृक्ष जंंबूवृक्ष के समान कहे गये हैं ।।१५।।
तालाब, कुण्ड, महानदियां तथा पद्मह्रद भी, ये अवगाह की अपेक्षा पूर्व अर्थात् जंबूद्वीपस्थ तालाब आदि के समान हैं। परन्तु विस्तार में वे जंबूद्वीप के तालाब आदि से दूने दूने हैं।।१६।।
(तत्त्वार्थवार्तिक ग्रंथ से)
जम्बूद्वीप में जहाँ जम्बूवृक्ष हैं, धातकीखण्ड में वहाँ धातकीवृक्ष हैं। इस वृक्ष का वर्णन तथा इसके परिवार वृक्ष जम्बूवृक्ष के समान हैं। उस वृक्ष पर निवास करने वाला द्वीपाधिपति (धातकीखण्ड का अधिपति) होने से इस द्वीप का नाम धातकीखण्ड जानना चाहिए।